जब आप टूट जाते हैं कमज़ोर पड़ जाते हैं !
जब आप टूट जाते हैं, कमजोर पड़ जाते हैं......!!
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चाहे कोई व्यक्ति कितना ही योग्य ईमानदार मजबूत और निपुण क्यों न हो व्यक्ति के जीवन में कई सारे ऐसे पल आ जाते हैं जब व्यक्ति बेहद कमजोर, हारा हुआ और निराश हो जाता है।
वह पल ऐसे होते हैं जब उसे एक तरफ़ अपने "व्यक्तिगत रिश्तों की लड़ाई लड़नी होती है, दूसरी तरफ ख़ुद के टूटने की लड़ाई जो कि दुनियाँ की नजर से खुद को देखने के कारण उपजे अवसाद निराशा और कमजोरियों से उत्पन्न होती है" खुद को लड़ना होता है..
दूसरे नम्बर की स्थिति बनी ही क्यों है? यह जो स्थिति है दुनियाँ की नजर से खुद को ढालने की कोशिश जिसकी एवज में आप अवसाद के शिकार हो गए, इस दूसरे नम्बर की स्थिति लड़ना उलझना व्यर्थ है। जरा सोंचिये, यह कैसे सम्भव है कि आप हर किसी के दिमाग के अनुरूप खुद को ढाल सकें। जब यह असंभव है तो इसमें उलझना कहाँ की बुद्धिमानी है। अगर आप इन सब चीजों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं तो एक दिन यही बात आपके सार्वजनिक जीवन मे आपके बिरुद्ध प्रमुख हथियार भी बन सकता है, लोग जानते हैं कि आप उनके नजर के हिसाब से ढलने की कोशिश करेंगे और आप उनकी नजर में ढलते ढलते एक दिन वहां पहुंच जाएंगे जहां आपके लिए सारे रास्ते बंद हो जाएंगे और आप भंवर में फंसते चले जाएंगे। अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप खुद को भंवर में फँसने देना चाहते हैं या इस भंवर से बाहर निकल कर अपनी जिंदगी खुद के हिसाब से जीना चाहते हैं।
अगर आप एक बार इससे बाहर आ गये तो यक़ीन मानिए आप एक निर्णायक स्थिति में आ जाएंगे। यह सच है कि जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं जब आप कोई निर्णय नहीं ले पाते हैं, कोई एक लाइन नहीं बना पाते हैं, यह अनिर्णय की स्थिति आपको एक दिन तोड़ सकती है, आपकी जिंदगी बोझिल बना सकती है, उलझा सकती है, व्यक्तिगत रिश्तों में आप कई बार ख़ुद को ऐसी स्थिति में पा सकते हैं जब आपको लगे कि आप चारो ओर से बिरोधी विचारों और षनयन्त्रों से घिरे हुए हैं, फँसे हुए है जिसकी अभिव्यक्ति सिर्फ़ आप ख़ुद से ही तय कर पायें।
जब ऐसी स्थिति आ जाय तो सिर्फ़ यही सोचना चाहिए “प्यार है तो प्यार है, घृणा है तो घृणा है, प्यार घृणा कैसे हो सकता है या अगर घृणा है तो प्यार कैसे बन सकता है?
और अगर कोई यह कहे की पहले प्यार था और अब घृणा हो गयी है तो यह विचार मूल रूप से ही ग़लत है। प्यार में गिले शिकवे रूठना मनाना संधि या बिच्छेद हो सकते हैं मगर धोखा छल या षड्यंत्र कहाँ से आयेंगे और क्यों आयेंगे, जो व्यक्ति किसी को प्यार करता है वह उसे नुकसान पहुंचाने के बारे में सोंच भी कैसे सकता है, और नुकसान क्यों पहुंचाएगा?
जहां नुकसान पहुंचाने, घृणा, छल कपट या षणयंत्र की भावना मन मे हो वहाँ प्यार शब्द का इश्तेमाल करना ही हास्यास्पद है, यहां प्यार की कोई गुंजाइश ही नहीं बचती है।
जीवन का एक सच यह भी है कि आपका व्यक्तिगत जीवन हो या सार्वजनिक जीवन आपके ऊपर बहुत से अटैक होते रहेंगे। कभी आप उन परिस्थितियों में खुद को सहज पातें हैं कभी असहज। कभी कभी इससे आप लड़ पाते हैं कभी कभी आप कमजोर पड़ जाते हैं, कभी ताकत सामर्थ्य होते हुए भी आप निराश हो जाते हैं, हार जाते हैं।
हो सकता है कि असहजता का यह बोझ इतना ज्यादा बढ़ जाये कि आप खुद को हारा हुआ मानकर कमजोर पड़ जाएं। इस लिए जरूरी है कि आपके अंदर जो फीलिंग्स है और जो फीलिंग्स बाहरी नजरिये से है वो सब जो आपको इंफ्लुएंस कर रही हो, उसमें सामंजस्य बनाने की कोशिश करें। हलां की यह आसान नहीं है मगर फिर भी अगर आप कुछ हद तक भी ऐसा कर पा रहे हैं तो उम्मीद की किरण यहीं से दिखने की संभावना शुरू हो सकती है।
हर बार खुद को सही साबित करने में ऊर्जा लॉस करना, समय और शक्ति व्यर्थ करना उचित नहीं है। परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, व्यक्तिगत रिश्तों में आप जो हैं वही रहें, सामने वाला अगर बदल जाये तो उसे बदलने दीजिये मगर उंसके बदल जाने से अगर आप खुद को बदलने की कोशिश करते हैं यह आपके लिए सहज कैसे हो सकता है, अगर कुछ वक़्त के लिए सहज होता भी है तो आखिर कब तक? इसलिए अगले की नजर के लिये खुद को बदलने की जो गैर जरूरी बात है उसपे कभी न कभी पूर्ण विराम लगना चाहिए।
आपका अपना खुद का एक जीवन है विचार है जीवन शैली है भाषा है प्रेम है, चीजों को देखने की, दुनियाँ को देखने समझने की एक नजरिया है, आप उसी ख़ुद में खुद को देखिए, खुद से खुद को समझने की कोशिश कीजिये, आखिर आप भी तो "कुछ" हैं, आप जो "कुछ" भी हैं, उसी "कुछ" को सम्भाल कर रखिये, वही "कुछ" आपका वजूद है, वह "कुछ" ही है जो आपकी पहचान है, जिस दिन आपने उस "कुछ" को खाद पानी डालना शुरू किया, आप खुद में बेटर महसूस करेंगे और आपका जीवन "कुछ" आसान हो जाएगा, आपके अंदर जो एक बात थी दुनियाँ की नजर से खुद को देखने की, कमजोर पाने की, एक झिझक थी खुद को खुद से न पहचान पाने की उसमे बहुत कुछ बैलेंस बन जायेगा और धीरे धीरे आप निखरने लगेंगे और आपका जीवन आपके उसी "कुछ" से ज्यादा नहीं तो "कुछ" ही सही "कुछ" आसान हो जाएगा।
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