खोया हुआ व्यक्तित्व……… !
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हम हम ही रहें ये संभव है क्या ?
जब भी हमने खुद को आईने में ,
पहचानने और जाने की कोशिश की।
हर बार एक नया व्यक्तित्व नजर आया।
कुछ अकड़ू सा ,कुछ जिद्दी सा , कुछ परेशान ,
बेहाल ,बदहाल और अव्यवस्थित।
न जाने क्यों वो सिमटा हुआ ,
सुलझा हुआ , व्यवस्थित अपनापन ,
कहाँ गुम गया। जो आज ओझल है।
हमारी नजर और पहुँच से ,
दूर कहीं कोने में सिमटा बैठा ,
हमारी ही राह तक रहा है कि ,
कब हम उसे गले लगाएंगे।
प्यार से अपने करीब बैठाएंगे।
अपनी आदतों में उसे महत्व दे कर ,
उसकी महत्ता को बढ़ाएंगे।
जिससे उससे कहीं ज्यादा हम पाएंगे।
और बाद में खुद को ही ,
बेहतर चुनाव के लिए सराहेंगे।
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हम हम ही रहें ये संभव है क्या ?
जब भी हमने खुद को आईने में ,
पहचानने और जाने की कोशिश की।
हर बार एक नया व्यक्तित्व नजर आया।
कुछ अकड़ू सा ,कुछ जिद्दी सा , कुछ परेशान ,
बेहाल ,बदहाल और अव्यवस्थित।
न जाने क्यों वो सिमटा हुआ ,
सुलझा हुआ , व्यवस्थित अपनापन ,
कहाँ गुम गया। जो आज ओझल है।
हमारी नजर और पहुँच से ,
दूर कहीं कोने में सिमटा बैठा ,
हमारी ही राह तक रहा है कि ,
कब हम उसे गले लगाएंगे।
प्यार से अपने करीब बैठाएंगे।
अपनी आदतों में उसे महत्व दे कर ,
उसकी महत्ता को बढ़ाएंगे।
जिससे उससे कहीं ज्यादा हम पाएंगे।
और बाद में खुद को ही ,
बेहतर चुनाव के लिए सराहेंगे।
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