अन्द्धश्रद्धा और निरर्थक मान्यताएं !

बीते शनिवार शिगनापुर के शनि मंदिर में एक युवती शनि देव को तेल चढ़ा कर आ गयी।  जो की उस मंदिर की प्रथा के अनुसार वर्जित है। इस का बहुत विरोध हुआ। बाद में शनि देव की शुद्धि के लिए उन्हें दूध दही आदि से नहलाया गया। ये अपनी अपनी मान्यता है।  मैं ये नहीं कहती की किसी मान्यता की पालना करना गलत है। पर ये मान्यताएं बनाई किसने है ? ईश्वर ने खुद तो नहीं बनाई होंगी। ये हमारे मंदिरों के पुजारी ,महंत और पंडो के बनाये नियम और धारणाएं हैं जिस का पालन हम सभी इस लिए करते है की वह ईश्वर के करीब रहते हैं। इस को अन्धविश्वास की तरह मानना गलत है। 
                अब इस घटना का विश्लेषण कुछ इस तरह करते हैं कि एक स्त्री देव को नहीं छू सकती ऐसी मान्यता क्यों है ? और फिर यदि छू भी दे तो दूध से स्नान करने से  क्या देव शुद्ध हो गए ?  स्त्री जिसे ईश्वर अपनी श्रेष्ठतम कृति में से एक मानता है।  जिस के दम पर आज इस दुनिया में जीवन का चक्र चल रहा है।  उस के छूने से कोई ईश्वर अपवित्र कैसे हो गए।  और फिर दूध से स्नान , वह दूध जो की एक स्त्री के शरीर में भी बनता है अपने बच्चे को जीवन दान देने के लिए। क्या अजीब सोच है और फिर उसके अजीब से स्पष्टीकरण। कहते है कि बालाजी या शिवलिंग को कन्याओं को नहीं पूजना चाहिए।  बालाजी ब्रम्हचारी हैं और शिवलिंग पर सिर्फ माँ पार्वती का हक़ है उनकी पत्नी होने के नाते। परन्तु मैं ये नहीं समझ पाती कि ईश्वर अपने भक्तों का वर्गीकरण लिंग के आधार पर  क्यों करेगा।  उसे तो अंध श्रद्धा चाहिए वह किसी से भी मिले। 
                                                      मैं बालाजी की परम भक्त हूँ जैसा कि मैंने पहले के कई लेखों में वर्णित किया है। मुझे ऐसा लगता है कि जब भी कभी मैं उनसे अपने मन की बात कहती हूँ वह उसे सुनते हैं।  ईश्वर सिर्फ भक्ति के भाव देखते हैं। इस तरह की गलत मान्यताएं पुजारियों के चोंचले है जिस से उनका वर्चस्व बना रहता है।  अन्यथा हम जब खुद ही ईश्वर से प्रत्यक्ष संवाद कर सकतें हैं।  तो इन तथाकथित पुजारिओं की क्या जरूरत है। और वह भी तब जब वह स्त्रियों को ही भगवान से दूर करके पूजा को सफल मानते हैं।  

Comments