सच का आभास
सच ही तो है ,
मैंने क्यों नहीं समझा,
और ये जाना।
जंगल सी बस्ती में
सुई से वजूद को ,
मुश्किल है संभालना।
और ये जाना।
जंगल सी बस्ती में
सुई से वजूद को ,
मुश्किल है संभालना।
कमजोर नहीं मैं ,
फिर भी ये मानती हूँ।
कोमलता से पनपे ,
डर को पहचानती हूँ।
फिर भी ये मानती हूँ।
कोमलता से पनपे ,
डर को पहचानती हूँ।
मजबूत हूँ फिर भी इस सच से
अनजान नहीं
अकेले अस्तिव की जंग मेरा अभिमान नही
दिन और रात के अंतर जैसा ,
मेरे वजूद का रूप है।
छावँ बनाने की कोशिश है ,
पर सिर्फ चुभन और धूप है।
सच ही तो है ये ,
मैंने क्यों नहीं माना
सशक्त होकर भी अपनी
बेचारगी को न पहचाना।
डर है हर उस से ,
जो अलग है मुझसे।
अस्तित्व और सुरक्षा की ,
लड़ाई है अब तुझसे।
मैं वह कदापि नहीं
जो तू अकेले में सोचता है
मैं वो चैन सुकून हूँ
जिसे तू हमेशा खोजता है।
दिन और रात के अंतर जैसा ,
मेरे वजूद का रूप है।
छावँ बनाने की कोशिश है ,
पर सिर्फ चुभन और धूप है।
सच ही तो है ये ,
मैंने क्यों नहीं माना
सशक्त होकर भी अपनी
बेचारगी को न पहचाना।
डर है हर उस से ,
जो अलग है मुझसे।
अस्तित्व और सुरक्षा की ,
लड़ाई है अब तुझसे।
मैं वह कदापि नहीं
जो तू अकेले में सोचता है
मैं वो चैन सुकून हूँ
जिसे तू हमेशा खोजता है।
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#औरतकावजूद
#औरतकावजूद
#लड़ाईअस्तित्वकी
#womanpower
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