
अकेलेपन का त्रास........!
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(एक मन का दुःख ,जो भीड़ में भी बिलकुल अकेला है )
व्यथा, कथा बन गयी ,
जीवन बना उपहास।
नहीं भाया मन को ,
जन्मों का सन्यास।
कहा नहीं,बस सहा ,
अंतर्मन का त्रास।
पीड़ा बन कर बह गया,
जीने का उल्लास।
सब कुछ छिन गया ,
हाथों से यूँ अनायास।
लगाते रहे दुखों में ,
इक ख़ुशी की कयास।
तन मन बींध रहा है ,
जो बन कांटें की फांस।
बिखर गया सब कुछ,
अब हुआ ये आभास।
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