एक और बलि ..............!
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धन्य है ये भारत देश और धन्य है यहाँ की न्याय प्रणाली......... जिसमें वयस्क सोच और कृत्य वाला भी बाल श्रेणी में आता है। उसके किये का परिणाम भले ही कोई और भुगते पर वह आसानी से खुद की छोटी उम्र का हवाला दे कर सभी आरोपों से बरी ही जायेगा। विगत दो दिनों से स्थानीय समाचार पत्रों में एक समाचार प्रथम पन्ने पर दुखद रूप में विचारणीय बना हुआ है। सभी ने उसे पढ़ा भी होगा दुःख भी जाहिर किया होगा पर हाय रे सामाजिक और कानूनी व्यवस्था , करने को कोई भी आगे नहीं आयेगा। वह भी नहीं जो इस व्यवस्था को बदलने का माद्दा रखते हैं।
अब आप इस घटना का वृतांत जानें , एक सात वर्षीया बच्ची 15 अगस्त को विद्यालय के समारोह में नृत्य प्रस्तुत कर के वापस आयी। और घर में आते ही माँ के दुपट्टे से फंदा लगाकर जान दे दी। कारण था पिछले पांच सात दिनों से उसका दैहिक शोषण। वह बच्ची खुद ही समझ नहीं पा रही थी तो माँ को क्या बताती। माता और पिता दोनों मजदूरी का कार्य करते हैं। रोज वह बच्ची को स्कूल भेज कर काम पर चले जाते हैं। बच्ची पीछे से लौट कर घर पर ही रहती है। पड़ोस का एक १३ वर्षीय लड़का इस दिनचर्या का अवलोकन कर रहा था। उसे ये पता था कि शाम सात बजे तक वह बच्ची घर में अकेली ही रहेगी। उसने घर आ कर उस बच्ची के साथ शारीरिक शोषण प्रारम्भ कर दिया। पहले तो बच्ची को कुछ समझ नहीं आया। क्योंकि उसे इसे खेल की तरह समझाया और दिखाया गया। जब उसे तकलीफ और दर्द का आभास हुआ तब उसे ये लगा की कुछ तो गलत है पर माता पिता को बताने की हिम्मत वह नहीं जुटा पायी। कई दिनों के लगातार दर्द और शोषण से पीछा छुड़ाने के लिए उसने अपनी जान देना ही मुनासिब समझा।
आइये अब इस घटना का विश्लेषण करें। पहला ये कि 12 -13 वर्ष के छोटे लड़के को भी शारीरिक सम्बन्ध बनाने की प्रक्रिया की समझ है। इस का कारण या तो इन्टरनेट या टीवी होगा या फिर उसके माता पिता। मातापिता इस वजह से कारण बन गए कि ये परिवार छोटी खोलियों में जीवन यापन करते हैं। और इतनी जगह नहीं होती कि बच्चों को अलग सुलाया जा सके। साथ में सोते हुए बच्चों के रहते हुए वह अपनी शारीरिक जरूरतों को पूर्ण करते हैं। नींद में न होने या अचानक नींद खुल जाने पर बच्चा वह सब देखता और महसूस करता है। इस के चलते वह कम उम्र में ही इस क्रिया कलाप से वाकिफ हो जाता है। मैं जब भी जोधपुर से दिल्ली जाती हूँ रेलवे पटरी के किनारे बनी झुग्गियों में रहने वालों के घरों की स्थिति को देखती और समझती हूँ। उन घरों में जोड़ तोड़ कर के रहने लायक व्यवस्था बनाई गयी होती है। शायद ज्यादा से ज्यादा एक खोखे जितनी जगह। परंतु एक आश्चर्य जो मुझे विस्मृत करता है वह है हर घर में टीवी के लिए केबल की छतरी का लगा होना। उस छतरी का पैसा भरने के लिए भी वह मेहनत करते होंगे। पर उस मेहनत का परिणाम यह होता है कि उनके काम पर जाने के बाद या उनके आने के बाद उनके बच्चे उनके सामने भी वह सब देखते हैं जो उन्हें समय से पहले वयस्क बना रहा हैं। ये एक त्रासदी हैं और मुझे नहीं लगता इसे अब रोका जा सकता है। भले ही हमारी बच्चियां इसकी भेंट चढ़ती रहें।
अब दूसरा पहलु ये समझें कि 5 -7 साल की बच्ची को किस तरह शारीरिक दोहन की प्रक्रिया समझायी जाए। उसे कैसे समझाएं कि ये घटना होए तो समझ की तेरे साथ कुछ गलत हो रहा है। एक उम्र होने के बाद सभी अपने शरीर के सभी अंगों को ढक कर रखते हैं। एक छोटी बालिका को तो शायद पुरुष जननांग की जानकारी भी नहीं होगी और अगर साथ के भाइयों को देख कर जानकारी होगी भी तो उसे ये कैसे बताया जाये कि उसी के जरिये उसके साथ कुछ गलत किया जा सकता है। मैं तो इस विषय में बिलकुल ही विमूढ़ हूँ।
अब तीसरा पहलु ये कि उस सात वर्षीया बच्ची को आत्महत्या का ख्याल कैसे आया और कैसे ये समझ आया की मैं ऐसे मर सकती हूँ। मेरी भी इतनी ही छोटी एक बच्ची है उसके बारे में सोचा तो ये महसूस किया कि उसे तो अपने खिलोने , खेलकूद और खाने पीने के अलावा कुछ समझ ही नहीं आता। बचपने के आगे कोई भी गंभीरता टिकती ही नहीं। ऐसे में ये ख्याल आ पाना की ऐसे आत्महत्या की जा सकती है ये चुभने वाला सवाल है। पर ये सत्य है और ऐसा हुआ। सिर्फ उस पर चर्चा करने और दुख मनाने के अलावा मैं भी कुछ नहीं कर सकती। क्योंकि वह लड़का जो कि अभी बालसुधार गृह में भेजा गया है दो चार महीनों में छूट कर फिर से सामान्य जिंदगी जीने लगेगा लेकिन एक मासूम सी जान उसकी वजह से दुःख भोग कर हमेशा के लिए चली गयी।
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धन्य है ये भारत देश और धन्य है यहाँ की न्याय प्रणाली......... जिसमें वयस्क सोच और कृत्य वाला भी बाल श्रेणी में आता है। उसके किये का परिणाम भले ही कोई और भुगते पर वह आसानी से खुद की छोटी उम्र का हवाला दे कर सभी आरोपों से बरी ही जायेगा। विगत दो दिनों से स्थानीय समाचार पत्रों में एक समाचार प्रथम पन्ने पर दुखद रूप में विचारणीय बना हुआ है। सभी ने उसे पढ़ा भी होगा दुःख भी जाहिर किया होगा पर हाय रे सामाजिक और कानूनी व्यवस्था , करने को कोई भी आगे नहीं आयेगा। वह भी नहीं जो इस व्यवस्था को बदलने का माद्दा रखते हैं।
अब आप इस घटना का वृतांत जानें , एक सात वर्षीया बच्ची 15 अगस्त को विद्यालय के समारोह में नृत्य प्रस्तुत कर के वापस आयी। और घर में आते ही माँ के दुपट्टे से फंदा लगाकर जान दे दी। कारण था पिछले पांच सात दिनों से उसका दैहिक शोषण। वह बच्ची खुद ही समझ नहीं पा रही थी तो माँ को क्या बताती। माता और पिता दोनों मजदूरी का कार्य करते हैं। रोज वह बच्ची को स्कूल भेज कर काम पर चले जाते हैं। बच्ची पीछे से लौट कर घर पर ही रहती है। पड़ोस का एक १३ वर्षीय लड़का इस दिनचर्या का अवलोकन कर रहा था। उसे ये पता था कि शाम सात बजे तक वह बच्ची घर में अकेली ही रहेगी। उसने घर आ कर उस बच्ची के साथ शारीरिक शोषण प्रारम्भ कर दिया। पहले तो बच्ची को कुछ समझ नहीं आया। क्योंकि उसे इसे खेल की तरह समझाया और दिखाया गया। जब उसे तकलीफ और दर्द का आभास हुआ तब उसे ये लगा की कुछ तो गलत है पर माता पिता को बताने की हिम्मत वह नहीं जुटा पायी। कई दिनों के लगातार दर्द और शोषण से पीछा छुड़ाने के लिए उसने अपनी जान देना ही मुनासिब समझा।
आइये अब इस घटना का विश्लेषण करें। पहला ये कि 12 -13 वर्ष के छोटे लड़के को भी शारीरिक सम्बन्ध बनाने की प्रक्रिया की समझ है। इस का कारण या तो इन्टरनेट या टीवी होगा या फिर उसके माता पिता। मातापिता इस वजह से कारण बन गए कि ये परिवार छोटी खोलियों में जीवन यापन करते हैं। और इतनी जगह नहीं होती कि बच्चों को अलग सुलाया जा सके। साथ में सोते हुए बच्चों के रहते हुए वह अपनी शारीरिक जरूरतों को पूर्ण करते हैं। नींद में न होने या अचानक नींद खुल जाने पर बच्चा वह सब देखता और महसूस करता है। इस के चलते वह कम उम्र में ही इस क्रिया कलाप से वाकिफ हो जाता है। मैं जब भी जोधपुर से दिल्ली जाती हूँ रेलवे पटरी के किनारे बनी झुग्गियों में रहने वालों के घरों की स्थिति को देखती और समझती हूँ। उन घरों में जोड़ तोड़ कर के रहने लायक व्यवस्था बनाई गयी होती है। शायद ज्यादा से ज्यादा एक खोखे जितनी जगह। परंतु एक आश्चर्य जो मुझे विस्मृत करता है वह है हर घर में टीवी के लिए केबल की छतरी का लगा होना। उस छतरी का पैसा भरने के लिए भी वह मेहनत करते होंगे। पर उस मेहनत का परिणाम यह होता है कि उनके काम पर जाने के बाद या उनके आने के बाद उनके बच्चे उनके सामने भी वह सब देखते हैं जो उन्हें समय से पहले वयस्क बना रहा हैं। ये एक त्रासदी हैं और मुझे नहीं लगता इसे अब रोका जा सकता है। भले ही हमारी बच्चियां इसकी भेंट चढ़ती रहें।
अब दूसरा पहलु ये समझें कि 5 -7 साल की बच्ची को किस तरह शारीरिक दोहन की प्रक्रिया समझायी जाए। उसे कैसे समझाएं कि ये घटना होए तो समझ की तेरे साथ कुछ गलत हो रहा है। एक उम्र होने के बाद सभी अपने शरीर के सभी अंगों को ढक कर रखते हैं। एक छोटी बालिका को तो शायद पुरुष जननांग की जानकारी भी नहीं होगी और अगर साथ के भाइयों को देख कर जानकारी होगी भी तो उसे ये कैसे बताया जाये कि उसी के जरिये उसके साथ कुछ गलत किया जा सकता है। मैं तो इस विषय में बिलकुल ही विमूढ़ हूँ।
अब तीसरा पहलु ये कि उस सात वर्षीया बच्ची को आत्महत्या का ख्याल कैसे आया और कैसे ये समझ आया की मैं ऐसे मर सकती हूँ। मेरी भी इतनी ही छोटी एक बच्ची है उसके बारे में सोचा तो ये महसूस किया कि उसे तो अपने खिलोने , खेलकूद और खाने पीने के अलावा कुछ समझ ही नहीं आता। बचपने के आगे कोई भी गंभीरता टिकती ही नहीं। ऐसे में ये ख्याल आ पाना की ऐसे आत्महत्या की जा सकती है ये चुभने वाला सवाल है। पर ये सत्य है और ऐसा हुआ। सिर्फ उस पर चर्चा करने और दुख मनाने के अलावा मैं भी कुछ नहीं कर सकती। क्योंकि वह लड़का जो कि अभी बालसुधार गृह में भेजा गया है दो चार महीनों में छूट कर फिर से सामान्य जिंदगी जीने लगेगा लेकिन एक मासूम सी जान उसकी वजह से दुःख भोग कर हमेशा के लिए चली गयी।
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