व्यावहारिक,सामाजिक और आर्थिक बदलाव के परिणाम स्वरुप संतान में अनुवांशिक विकृति और रोग ......... !



समाज के वर्चस्व का ठेका पुरुषों के हाथ में होने से स्त्रियां हमेशा से उन बातों के लिए दोषी मानी गयी है जिसे बाद में विज्ञान ने या आधुनिक सोच ने बदल कर रख दिया। जैसे की बलात्कार के बाद स्त्री को अलहदा नजरिये से देखा जाना और उस के लिए उसे जिम्मेदार मानना अब ख़त्म सा हो गया है। इसी तरह बेटा या बेटी होने में स्त्री का दोष होना विज्ञान ने ख़ारिज कर दिया। उसके अनुसार पुरुष के शुक्राणु ये तय करते हैं कि होने वाली संतान स्त्रीलिंग होगी या पुल्लिंग। स्त्री को उसकी सही जगह दिलाने में विज्ञान का बहुत योगदान है। 
                                                                                                                           

इसी तरह की एक नयी खोज ने एक और रहस्य पर से पर्दा उठाया है। वह है संतान में अनुवांशिक रोगों के लिए स्त्री के गर्भ को दोषी मानना। सामान्यतः यदि कोई बच्चा गर्भ से किसी रोग से पीड़ित हो कर जन्म लेता है तो इस के लिए स्त्री के गर्भ के विकास और स्त्री के शरीर की कुछ कमी को दोषी माना जाता है। परंतु इस रिसर्च ने इस सत्य को उजागर कर दिया की बच्चे में जन्म से कोई विकृति या रोग है तो इसके लिए माता नहीं बल्कि पिता जिम्मेदार है। जयपुर के एक जाने माने अस्पताल के कई डॉक्टर की एक टीम ने एक रिसर्च किया जिसमें अनुवांशिक रोगों या विकृति से जूझते कई बच्चों की केस स्टडी बनाई गयी।  जो एक सामान्य कारण सामने आया वह यह था की सभी बच्चो के पिता 40 वर्ष से अधिक उम्र के थे।
                                                           इन बच्चो में लर्निंग डिसऑर्डर(learning disorder) , आटिज्म(autism) , स्पीच प्रॉब्लम(speech problems) , डाउन सिंड्रोम (down syndrome) ,सिज्रोफेनिया  ,न्यूरो साइकियाट्रिक डिसऑर्डर (neuro psychiatric disorder)  , या हाइपर एक्टिविटी (hipper activity )जैसी कई समस्याएं मिली। ये सभी बीमारियां जन्म से ही अपने लक्षण दिखाने लगी। अब इसका वैज्ञानिक कारण समझिये , 25 वर्ष की उम्र में कोई भी शुक्राणु 16 दिन में एक ही बार विभाजित होता है।  जो कि अंडाणु से मिल कर एक एक स्वस्थ्य भ्रूण बनाता है। जबकि यही शुक्राणु 40 की उम्र तक 660 बार और 50 की उम्र तक 800 बार विभाजित होने लगता है। इस विभाजन से कई हिस्सों में बँट कर उसकी शक्ति कमजोर हो जाती है। और फिर जब कोई शक्तिहीन शुक्राणु अंडाणु से मिल कर भ्रूण बनाता है तो वह स्वस्थ्य नहीं होता। इस लिए विवाह के पश्चात् संतान के लिए उत्तम आयु 25 -35 की ही है। 
                                     आधुनिक जीवन की तमाम व्यावहारिक और सामाजिक उलझनों के नाते आज कल के विवाहित जोड़े अपनी इच्छा से और समयानुसार बच्चे करने का फैसला लेते हैं। परन्तु इस निर्णय में देरी से उन्हें इस तरह के मानसिक कष्ट से पुरे जीवन जूझना पड़ सकता है। विवाहोपरांत बच्चा जल्दी करने के economic कारण भी है। जो की रिटायरमेंट तक जिमेदारियों से बरी करा चुके होते हैं। इस लिए विज्ञान की खोज के नाते या फिर समय पर बच्चों की जिम्मेदारी से मुक्त होने के नाते अपने निर्णय को परख कर कदम उठाना बेहतर है। 

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