खुल कर जीने का उल्लास ....... !
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मन के बंदी बन मत जिओ ,
खुल के जीने का बात करो  
सारा आसमान तुम्हारा है ,
बस लंबे अपने हाथ करो। 
              क्यों घुट घुट कर यूँ रहते हो ,
              थोड़ा खुली हवा में आओ तो। 
              साथ में  लेकर दो चार लोग  
              सुखों की बिसात बिछाओ तो।  
सब अपने है ये सोचा क्या ,
या यूँ ही भागे फिरते हो। 
दूर दूर रहकर तुम खुद ही ,
खुद को तनहा करते हो। 
                धुप ,तपन की गर्मी का सुख  ,
                घुप्प अँधेरे में क्या भोगोगे। 
                मन ही से घोर निराशा हो ,
                तो क्या उछाह में उछलो कूदोगे।  
सब बंधन तोड़ स्वतन्त्र बनो ,
जीने का मक़सद पूरा हो।                 
पशु सामान जीये तो बस  ,
मानव  जन्म अधूरा है। 

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