(मुझे रोजाना ब्लॉग लिखते और संवाद करते देख कर यह लेख मेरी आठ वर्षीया बच्ची ने यूँ ही अपनी भावनाएं व्यक्त करने को लिखा जिसे मैं आप के समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ इसलिए कि मैंने अपने पिछले ही लेख में आठ वर्षीया बच्चों की सोच के बचपने और बड़ेपन का जिक्र किया था , आप खुद ही इसे पढ़ें और तय करें कि इतने छोटे बच्चे की सोच कहाँ तक और किस विषय पर कितनी दूर तक जा सकती है कि उसने ऐसा लेख लिखा। ....... इसमें  आप को उसके बचपने की झलक दिखेगी जिस ने अपने मन के विचारों और भावों को बिना किसी भूमिका के यूँ ही मेरे ब्लॉग के पेज पर उतार दिया। हो सकता है कि इसे पढ़ कर आप को हंसी आये पर यह आप ये महसूस करना कि आप की ये हंसी उस बचपने की अनजान बातों के लिए हैं जिसमे दुनिया बहुत छोटी छोटी चीजों और खुशियों में सिमटी रहती है। )
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