सोच और समय से पहले...................! 

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क्या लिखूं कैसे लिखूं , अब तो लिखने और सोचने का के नाम से ही दहशत सी होने लगती है फिर भी आप सभी से बाँट कर अपने मन का दुःख हल्का महसूस करती हूँ।  इस लिए कि  कम से कम कुछ लोगों तक तो इस तकलीफ की पीड़ा की कसक मैंने पहुँचाई। हो सकता है कि कुछ लोग समझ पायें और कुछ लोग इसे एक सबक के रूप में स्वीकार करें कि आगे से ऐसा होते और सुनते पाए तो प्रतिरोध अवश्यं करेंगे। ......... इस समस्या की जड़ टी. वी और इन्टरनेट है। जो आज कल छोटे छोटे बच्चों को भी सारी जानकारी दे देता है जो उनकी उम्र से बहुत ऊपर हैं। कल ही के समाचार पत्र में प्रकाशित एक खबर जिसमें  8 से 12 साल के चार लड़कों ने एक 6 वर्ष की छोटी बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार किया। ...... 
                                                                 अच्छा नहीं लगा न  पढ़ कर। मुझे भी बहुत  बुरा लगा।  पर क्या लगा ये देखिये ,मुझे बुरा लगा की उन लड़कों के माता पिता ने क्या कभी अपने बच्चों की सोच पढ़ने की कोशिश की। हम रोजाना अपने बच्चों से बात करते है तो उन की मानसिकता और सोचने का स्तर समझने और जानने लगते हैं। उनकी बातों से उनके बचपना या परिपक्वता का अहसास होने लगता है। धीरे धीरे पता   लगाया जा सकता है कि एक 8 से 10 साल का बच्चा किसी विषय की किस हद तक जानकारी रखता है। इसी के आधार पर हम उन्हें सलाह या सचेत कर सकते है ,एक अनजान खतरे में न पड़ने के लिए। पर अब इसे सिर्फ बच्चो की गलती कह कर हम माता पिता इस संवेदनशील मुद्दे से पल्ला नहीं झाड़ सकते।अगर हमारे बीच के ही कुछ बच्चे ऐसी सोच रखते हैं तो इसमें  परवरिश और सजगता की कमी है। ये चाहे कोई गरीब माता पिता हो या संपन्न सभी पर लागू होता है कि वह अपने बेटों को ये सिखायें कि उम्र और समय से पहले कोई भी कार्य जीवन को हानि पहुंचता है साथ ही भविष्य को अंधकारमय कर देता है। हम जितना अपनी बेटियों को सजग रहने की सलाह  देते हैं उसी तरह इस जांनकारी के सभी नकारात्मक पहलुओं से अपने बेटों को भी परिचित कराना चाहिए। तभी सही मायनों में बेटियों का उद्धार होगा। 

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