मैं अच्छी नहीं....... ?
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शायद मैं अच्छी नहीं ,
क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलती।
दूसरों की इच्छाओं के अनुरूप ,
सच को कभी नहीं तोलती।
शायद मैं अच्छी नहीं ,
क्योंकि पीठ पर वार नहीं करती।
जो है सब कुछ सामने ही तो है ,
ये सोच कर पीछे से प्रहार नहीं करती।
शायद मैं अच्छी नहीं ,
क्योंकि सभी को ही भला समझती।
आस्तीन में रहकर सांप बन जाते हैं ,
लोगों की ये कला नहीं समझती।
शायद मैं अच्छी नहीं ,
क्योंकि छल कपट का अर्थ नहीं जानती।
मुहँ पर अच्छे बने रहने वालों के लोगों की ,
दिलों के अंदर की गर्द नहीं जानती।
शायद मैं अच्छी नहीं ,
क्योंकि प्रतिउत्तर देना नहीं जानती।
चाशनी में लिपटे करेले को।
चखने के बाद भी नहीं पहचानती।
शायद मैं अच्छी नहीं ,
क्योंकि सभी में वफ़ा तलाश रही।
हरेक शीशी भरी हुई है जहर से ,
और मैं हूँ की सब में वफ़ा तलाश रही।
शायद मैं अच्छी नहीं ,
क्योंकि सही रास्तों से प्यार हैं।
नहीं समझी कि मंजिलों की चाह में,
गलत अपनाने वालों की भरमार है।
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शायद मैं अच्छी नहीं ,
क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलती।
दूसरों की इच्छाओं के अनुरूप ,
सच को कभी नहीं तोलती।
शायद मैं अच्छी नहीं ,
क्योंकि पीठ पर वार नहीं करती।
जो है सब कुछ सामने ही तो है ,
ये सोच कर पीछे से प्रहार नहीं करती।
शायद मैं अच्छी नहीं ,
क्योंकि सभी को ही भला समझती।
आस्तीन में रहकर सांप बन जाते हैं ,
लोगों की ये कला नहीं समझती।
शायद मैं अच्छी नहीं ,
क्योंकि छल कपट का अर्थ नहीं जानती।
मुहँ पर अच्छे बने रहने वालों के लोगों की ,
दिलों के अंदर की गर्द नहीं जानती।
शायद मैं अच्छी नहीं ,
क्योंकि प्रतिउत्तर देना नहीं जानती।
चाशनी में लिपटे करेले को।
चखने के बाद भी नहीं पहचानती।
शायद मैं अच्छी नहीं ,
क्योंकि सभी में वफ़ा तलाश रही।
हरेक शीशी भरी हुई है जहर से ,
और मैं हूँ की सब में वफ़ा तलाश रही।
शायद मैं अच्छी नहीं ,
क्योंकि सही रास्तों से प्यार हैं।
नहीं समझी कि मंजिलों की चाह में,
गलत अपनाने वालों की भरमार है।
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