प्रायोगिक जिंदगी

प्रायोगिक जिंदगी  ........ !
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एक हमारा जमाना था जब हम माता पिता के साथ आदर और डर दोनों ही रिश्ते बना कर चलते थे। जिससे ऐसी कोई भी बात हम उनसे नहीं छुपाते थे जो की उनके जानने के लिए जरूरी हुआ करती थी।  क्योंकि ये अहसास हुआ करता था कि कही न कही वह हमसे ज्यादा अनुभवी हैं और जो भी स्थिति हमें बाधित कर रही है उसका बेहतर समाधान सिर्फ वही निकाल सकते हैं।  
                 ये तो हुई पुराने ज़माने की बात........ अब आज कल की स्थिति देखिये। सबसे पहले तो बच्चो से माता पिता को ये सुनना कि तुम्हे ये नहीं पता , ज़माने के साथ खुद को बदलो , समय के साथ अभ्युदय (advancement) करो ,  जीवन शैली में बदलाव लाओ , घर की चारदिवारी में रहकर बाहर के बारे में क्या जानते हो आदि आदि। ये सब रोजमर्रा के वक्तवय हो गए हैं।  इस के कई परिणाम हुए हैं।  
                                                           
 1 . बच्चे अब अपनी ही दुनिया में व्यस्त हो गए हैं।
 2. बच्चों ने अभिभावकों से एक हद तक की दूरियां बरक़रार कर ली हैं। 
3. बच्चों के मन की कोई भी बात अब किसी को पता नहीं चलती। 
4. उनके निर्णय भी वह स्वयं लेने का प्रयास करते हैं।5. दुनिया की तमाम जानकारियों के लिए उन्हें दादी ,नानी या माता पिता की जरूरत नहीं , आज उनके पास गूगल है। जो ये नहीं देखता कि फलाना जानकारी पाने की उनकी उम्र है भी की नहीं।
 6 . बिना रोक टोक उन्हें वो सब हांसिल करने की तमन्ना है जो वह दूसरों को देख कर जानते समझतें हैं। 
7. माता पिता और उनके घर उनके लिए उस सराय की तरह है जिसमें पैदा होकर या उसे अपना कर उन्होंने अहसान किया है। 
8 . धन की जरूरत उन्हें नहीं , वह तो माता पिता को प्रेम स्वरुप या मजबूरीवश इस लिए देनी पड़ती है कि उस के लिए भी कही बच्चा किसी असामाजिक कार्य में लिप्त हो जाए।                                                   9. परिवार के सभी रिश्ते नाते उन्हें उनकी आजाद जिंदगी की किरकिरी महसूस होते हैं। 
10. आखिर में सब बातों की एक बात , आज के हर बच्चे के जन्म से ही माता पिता शायद सिर्फ कोख और परवरिश के लिए नाम मात्र का माध्यम बन कर रह गए हैं। 
                                                        ये सब अब बदलती दुनिया में उनके लिए घातक है ये समझने में कई बार बहुत देर हो जाती है। जब कोई भी बाहरी बात परिवार तक नहीं आती और दुनिया भर की जानकारियां अपनी सारी सीमाएं तोड़ कर उन तक पहुंचती रहती है।  तो नए प्रयोगों को बिना किसी की सलाह या मशविरे के अपनाना उनके लिए जानलेवा तक साबित हो जाता हैं। लेकिन सही कहा गया है कि अब पछताए क्या होत , जब चिड़िया चुग गयी खेत। लेकिन इस पछतावे की भारी कीमत हमारी पीढ़ी ही जानती है। जो एक सबक के रूप में आगे की राह दिखाता है। उनके लिए ये पछतावा भी एक time-pass होता है।  जिसे किनारे कर के नया कदम बढ़ाने में यकीन रखतें है। भले ही वह उसी दिशा में क्यों न जाता हो। आखिर कब तक यूँ ही ये नयी संतति अपने भविष्य और हमारी उम्मीदों के साथ नए प्रयोगों को आजमाती रहेगी ?

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