जीवन का गुणा -भाग ......... !
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क्या कभी आप ने या हम सभी ने ये सोचा कि मानव का जीवन एक साथ तमाम घटनाओं का गुणा भाग है। जो कभी कम ज्यादा होकर हमें प्रभावित करती रहती है। हमारे आस पास प्रतिपल कुछ न कुछ घटता रहता है। कुछ घटनाएं हमें धक्का दे कर जाती हैं।  कुछ दाएं बाएं से हल्का सा छू कर निकल जाती हैं। कुछ को हम सामने होते हुए देखते हैं पर उनसे प्रभावित दूसरे होते हैं।  यदि ये विचारें तो पाएंगे कि हमारा पूरा व्यक्तित्व ही घटनाओं का जोड़ है। हम उनके आने और जाने के बीच के समय में इतना उलझ जाते हैं कि उनका मूल्यांकन नहीं कर पाते। लेकिन इन सब के बावजूद बहुत सी घटनाएं ऐसी होती हैं जो हमें पहले से ही विपत्ति और कष्ट का संकेत देती हैं।  लेकिन फिर वही हम उनका प्राथमिक स्तर पर उनका मूल्यांकन ही नहीं कर पाए। नहीं तो शायद उस विपत्ति से बचने के रास्ते पहले से ही ढूढ़ने लगते। अब जब विपत्ति सर पर आ ही जाती है तो मानव अपने हाथ पैर मार कर वह सब रस्ते तलाशता है जिनके जरिये वह आसानी से उस कठिन समय से बाहर निकल सके। 
                                                            इन सभी मुद्दों क पर विचारने के बाद कुछ अहम् बातें सामने आती हैं।  वह है कुछ महत्वपूर्ण तथ्य जिनको अपना कर विपत्ति को टाला या झेला जा सकता है। सबसे पहले है विद्या। शिक्षा एक ऐसा हथियार है जिससे बड़ी से बड़ी विपदा समझदारी से काटी जा सकती है। अतः पढाई लिखाई व्यक्ति को और उसके जीवन को सुदृण बनाती है। दूसरा है विनम्रता।  यदि शिक्षित व्यक्ति विनम्र हो तो वह सोने पर सुहागा सामान होता है। क्योंकि उसका स्वाभाव ही लोगो को उसकी ओर खींच कर उस की सहायता करवा देता है। तीसरा है विवेक। शिक्षा पढ़ा लिखा कर ज्ञान तो देती है पर उस ज्ञान को समझदारी से प्रयोग करना ही विवेक कहलाता है। चौथा है साहस। अपने अंतर्मन में साहस होना चाहिए कि उस विवेकपूर्ण निर्णय को करने के लिए प्रेरित हो सकें। कभी कभी कोई ऐसा भी निर्णय होता है जो हमारे तरीके से बिलकुल अलग होता है। उस समय विवेक की आवाज़ से उसे आजमाने या न आजमाने का निर्णय लेना पड़ता है। अब पांचवा है सत्य पर टिक कर रहना।  यदि सत्य का रास्ता लम्बा भी है तो उस पर ही चलना उचित है क्योंकि तब किसी झूठ को सच बनाने का परिश्रम नहीं करना पड़ेगा। छठा मंत्र है सदा अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित रहना।  क्योंकि नेक काज कभी भी विपत्ति को बुलावा नहीं देते। और सातवां और अंतिम है ईश्वर पर भरोसा। जब भी कभी विपत्ति आएं ये नहीं भूलना चाहिए कि हम सभी को चलाने वाला जो ऊपर बैठा है। वही इन परिस्थितियों का मालिक है। उसी के अनुसार ये अच्छे बुरे में बदलती हैं।  उसका भरोसा और विश्वास ही वह पूंजी हैं जो विपत्ति के समय हमारा हौसला बन कर हमारे साथ रहती है।  

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