परिपक्वता की वहशीयत...उम्र से पहले !!
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जब घटना घटे तब ही मानो कि,
परिपक्व हुए अब ये नौनिहाल।
बदली सोचों को समझों जब ,
कोई नन्ही सी कली हो बेहाल।
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अब छोटे भी वह सब सोचते हैं ,
और जानते हैं, मन की उछाल।
इस आधुनिक हुई दुनिया ने ही ,
फैलाया है ये कुत्सित भँवरजाल।
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क्यों नहीं आता है काबू में ,
भावनाओं का ये घृणित उबाल।
क्यों बचपन की मासूमियत से,
आज हुए नौनिहाल कंगाल।
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क्यों नहीं बना पाये हम सब ,
सरंक्षण की एक मजबूत ढाल।
क्यों समझ नहीं पाए मन की ,
उमड़ते वासनाओं का भूचाल।
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क्यों उम्र कहीं रह गयी पीछे ही ,
बस नज़र आये प्रौढ़ता का इंद्रजाल।
हम भी दोषी हैं बराबर के ,
रोक सके ना उनका पतनकाल।
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चेत सको तो अभी भी समय है,
कर लो भविष्य उज्जवज बहाल।
अनुशासन से समेट कर रोक लो ,
मत होने दो उन्हें चारित्रिक कंगाल ।
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उपरोक्त कविता एक सच्ची घटना पर लिखी गयी है । एक नामी गिरामी स्कूल में पढ़ने वाले दसवीं कक्षा केएक छात्र ने छह वर्षीय ,
दूसरी या तीसरी कक्षा की बच्ची के साथ शौचालय में घृणित हरकतें की । 
जब बच्ची के घर पर वृतांत बताने और फिर स्कूल के cctv कैमरे 
को जाँचने के बाद कथन सत्य पाया गया तो उस छात्र का बयान 
देखिए कि वह लड़की उसे बहुत समय से अच्छी लगती थी और 
वह उसे छूना चाहता था । हद हो गई उम्र से पहले पनपती वहशियत की ....























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