"सुप्रीम कोर्ट की फटकार........"
"लेफ्ट , राईट , सेंटर हर जगह बलात्कार ,फिर भी खामोश है सरकार ?????"
अब नहीं लगता कि हिंदुस्तान में कभी भी किसी भी दुर्घटना के विरोध में क्रांति के स्वर उठेंगे । ऐसा मैं इस लिए नहीं कह रही कि सब कुछ बेहतर और खुशनुमा हो गया है। बल्कि इस लिए कह रही हूँ की अब कोई भी सरकार ऐसी नहीं आएगी जो नागरिकों के बारें में सोचेगी। भारत में इस सरकार के आने के बाद से कुछ नया चलन शुरू हुआ है। पहला ,यह है विरोध की आवाज को हमेशा के लिए दबा देना , दूसरा किसी भी विवादासप्रद मुद्दे की और देखना नहीं उसे अनदेखा करना , तीसरा सिर्फ अपनी गुणगाथा में उन बातों का जिक्र करते रहना , जो अस्तित्व में ही नहीं हैं। ऐसा नहीं की मैं तत्कालीन सरकार के विरोध में हूँ। पर जहाँ छोटी बच्चियों की अस्मिता की आती है वहां बहुत सी दूसरी घटनाएं भी साथ में इस सरकार की खामियाँ उजागर करने लगता हैं।
अब तो देश के शीर्ष सुप्रीम कोर्ट ने भी एक बहुत ही दुःसाहसी वक्तव्य दिया है वह है.........
" लेफ्ट , राइट , सेंटर हर जगह बलात्कार , फिर भी खामोश है सरकार "। अब इस स्टेटमेंट से क्या अभिप्राय लगाया जाए ??? यही कि चाहे कितनी ही बच्चियां औरतें नाबालिग बलि चढ़ जाएँ पर अपनी कुर्सी का पाया न हिल जाए इस लिए हम कोई भी कार्यवाही नहीं करेंगे। साथ ही बलात्कारियों को अपने वोट बैंक के लिए सरंक्षण देते रहेंगे।
यह बात अभी हाल ही में प्रकाश में आईं कुछ घटनाओं के सन्दर्भ में कही गयी। असहाय बालिका सरंक्षण केंद्र में 10 से 16 साल की बच्चियों को नशीली दवाएं दे कर उनसे धंधा करवाया जाता था। जिसके ग्राहक बड़े असामी थे। बच्चियों के गर्भधारण के बाद यह खुलासा हुआ। यह कोई एक बालिका गृह की बात नहीं इसी तरह के कई संस्थान प्रकाश में आएं है जहाँ इस तरह के देह व्यापार की खबर मिली है। बच्चियां असहाय है इस लिए मुहं बंद कर चुप चाप दर्द सह रहीं थी।
अब मुद्दा यह है कि आखिर सरकार की इस के प्रति क्या जिम्मेदारी बनती है ?? क्या इतनी सारी बालिकाओं के साथ यह कांड होने के बाद भी उन्हें कार्यवाही के लिए आगे नहीं आना चाहिए ?? क्या अभी भी उन बच्चियों का दर्द उन्हें नहीं दिख रहा जो रोज बेचीं खरीदी जाती थी ?? क्या बच्चियों के गर्भधारण से भी उन्हें कोई डर या तकलीफ नहीं हुई ?? क्या इन मासूमों के चीखने चिल्लाने का भी असर नहीं हुआ करता ??ऐसे प्रश्न यक्ष की तरह सामने खड़े है। पर जवाब में कोई संवेदना नहीं। धन्य है यह सरकार और धन्य है इस के मंत्री !!
सही मायनों में देखा जाए तो गरीब बेसहारा बच्चियां होती ही इसीलिए हैं कि जो चाहे जब चाहे उन्हें अपनी जरूरत पूरी करने का सामान बना ले । मालदार आसामी जो घर से बाहर अपनी भूख शांत करना चाहे तो कोठे पर जाकर अपनी इज्जत का कचरा करने से बेहतर एक बालिका गृह में समाज सुधार के नाम पर बढियाँ मनोरंजन पा सकता है। इज्जत भी बची रही और जो सुख चाहते थे वह भी मिल गया। हो गयी इतिश्री। इस तरह सरकार भी तो सुरक्षित रहेगी। तो इसी तरह सब कुछ चलने दो। छोटी बच्चियों को सरे आम नुचने दो ,मरने दो ,घुटने दो।
"लेफ्ट , राईट , सेंटर हर जगह बलात्कार ,फिर भी खामोश है सरकार ?????"
अब नहीं लगता कि हिंदुस्तान में कभी भी किसी भी दुर्घटना के विरोध में क्रांति के स्वर उठेंगे । ऐसा मैं इस लिए नहीं कह रही कि सब कुछ बेहतर और खुशनुमा हो गया है। बल्कि इस लिए कह रही हूँ की अब कोई भी सरकार ऐसी नहीं आएगी जो नागरिकों के बारें में सोचेगी। भारत में इस सरकार के आने के बाद से कुछ नया चलन शुरू हुआ है। पहला ,यह है विरोध की आवाज को हमेशा के लिए दबा देना , दूसरा किसी भी विवादासप्रद मुद्दे की और देखना नहीं उसे अनदेखा करना , तीसरा सिर्फ अपनी गुणगाथा में उन बातों का जिक्र करते रहना , जो अस्तित्व में ही नहीं हैं। ऐसा नहीं की मैं तत्कालीन सरकार के विरोध में हूँ। पर जहाँ छोटी बच्चियों की अस्मिता की आती है वहां बहुत सी दूसरी घटनाएं भी साथ में इस सरकार की खामियाँ उजागर करने लगता हैं।
अब तो देश के शीर्ष सुप्रीम कोर्ट ने भी एक बहुत ही दुःसाहसी वक्तव्य दिया है वह है.........
" लेफ्ट , राइट , सेंटर हर जगह बलात्कार , फिर भी खामोश है सरकार "। अब इस स्टेटमेंट से क्या अभिप्राय लगाया जाए ??? यही कि चाहे कितनी ही बच्चियां औरतें नाबालिग बलि चढ़ जाएँ पर अपनी कुर्सी का पाया न हिल जाए इस लिए हम कोई भी कार्यवाही नहीं करेंगे। साथ ही बलात्कारियों को अपने वोट बैंक के लिए सरंक्षण देते रहेंगे।
यह बात अभी हाल ही में प्रकाश में आईं कुछ घटनाओं के सन्दर्भ में कही गयी। असहाय बालिका सरंक्षण केंद्र में 10 से 16 साल की बच्चियों को नशीली दवाएं दे कर उनसे धंधा करवाया जाता था। जिसके ग्राहक बड़े असामी थे। बच्चियों के गर्भधारण के बाद यह खुलासा हुआ। यह कोई एक बालिका गृह की बात नहीं इसी तरह के कई संस्थान प्रकाश में आएं है जहाँ इस तरह के देह व्यापार की खबर मिली है। बच्चियां असहाय है इस लिए मुहं बंद कर चुप चाप दर्द सह रहीं थी।
अब मुद्दा यह है कि आखिर सरकार की इस के प्रति क्या जिम्मेदारी बनती है ?? क्या इतनी सारी बालिकाओं के साथ यह कांड होने के बाद भी उन्हें कार्यवाही के लिए आगे नहीं आना चाहिए ?? क्या अभी भी उन बच्चियों का दर्द उन्हें नहीं दिख रहा जो रोज बेचीं खरीदी जाती थी ?? क्या बच्चियों के गर्भधारण से भी उन्हें कोई डर या तकलीफ नहीं हुई ?? क्या इन मासूमों के चीखने चिल्लाने का भी असर नहीं हुआ करता ??ऐसे प्रश्न यक्ष की तरह सामने खड़े है। पर जवाब में कोई संवेदना नहीं। धन्य है यह सरकार और धन्य है इस के मंत्री !!
सही मायनों में देखा जाए तो गरीब बेसहारा बच्चियां होती ही इसीलिए हैं कि जो चाहे जब चाहे उन्हें अपनी जरूरत पूरी करने का सामान बना ले । मालदार आसामी जो घर से बाहर अपनी भूख शांत करना चाहे तो कोठे पर जाकर अपनी इज्जत का कचरा करने से बेहतर एक बालिका गृह में समाज सुधार के नाम पर बढियाँ मनोरंजन पा सकता है। इज्जत भी बची रही और जो सुख चाहते थे वह भी मिल गया। हो गयी इतिश्री। इस तरह सरकार भी तो सुरक्षित रहेगी। तो इसी तरह सब कुछ चलने दो। छोटी बच्चियों को सरे आम नुचने दो ,मरने दो ,घुटने दो।
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