अंत भला तो सब भला 🙋
अंत भला तो सब भला....!!
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
आज 20 मार्च 2020 उस सुकून का दिन है जब एक तकलीफ़देह हादसे को न्याय मिला। सात साल,3 महीने,3 दिन बाद निर्भया के दोषियों को तड़के सुबह 5 बजे फाँसी दे दी गई। जब भी उस घटना को खुद को उस जगह रख कर याद किया रोंगटे खड़े हो जाते हैं। एक अकेली लड़की और छह वहशी दरिंदे .....ईश्वर भी उस समय कुछ क्षण के लिए अवाक रह गया होगा तभी वो उस हादसे को समय पर रोक नहीं पाया। वह बच्ची जिंदा रहने के तकरीबन 10 दिन तक होंठ सूखने पर एक एक बूंद पानी के लिए तरस गई क्योंकि उसकी लगभग 22 फुट आँत शरीर से बाहर थी। उस माँ के दर्द को मैंने एक माँ होने के नाते महसूस किया । आख़िर जिसको कोख में रख कर गढ़ा आज उसको बिखरा और उधड़ा सा देख कर कितना दर्द हो रहा होगा !
क्यों उस वकील ने इंसानियत को परे रख कर उन दरिंदों को सात साल तक बचाने की जुगत लगाई ... ? क्या आत्मिक रूप से उसे ये अहसास नहीं था कि ये ही आरोपी हैं ? आखिर क्यों एक व्यवसाय इंसानियत से ऊपर हो गया ? क्या उस वकील के औलाद नहीं है क्या उनके सुख दुख से वो सरोकार नहीं रखता ...! देर आये दुरुस्त आये। ईश्वर कहीं न जरूर मौजूद है। उसके पास बैठी निर्भया रोज शायद उनसे गुहार लगाती होगी कि अब तो उन दरिंदो को उनकी वहशीपन का बदला दो जिससे दर्द का उनको भी पता चले । ......वैसे एक क्षण में फाँसी से मरने और दरिंदगी भरे बलात्कार से मरने में बहुत अंतर है। फिर भी मरना तो मरना ही है। ईश्वर को धन्यवाद कि उसने 20 मार्च 2020 को उन दरिंदों की नियति में अंत लिख दिया । निर्भया अब तो सुकून से रहो क्योंकि अब तुम परमपिता की निगरानी में हो , और ये दरिंदे नर्क में ....आमीन !
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
आज 20 मार्च 2020 उस सुकून का दिन है जब एक तकलीफ़देह हादसे को न्याय मिला। सात साल,3 महीने,3 दिन बाद निर्भया के दोषियों को तड़के सुबह 5 बजे फाँसी दे दी गई। जब भी उस घटना को खुद को उस जगह रख कर याद किया रोंगटे खड़े हो जाते हैं। एक अकेली लड़की और छह वहशी दरिंदे .....ईश्वर भी उस समय कुछ क्षण के लिए अवाक रह गया होगा तभी वो उस हादसे को समय पर रोक नहीं पाया। वह बच्ची जिंदा रहने के तकरीबन 10 दिन तक होंठ सूखने पर एक एक बूंद पानी के लिए तरस गई क्योंकि उसकी लगभग 22 फुट आँत शरीर से बाहर थी। उस माँ के दर्द को मैंने एक माँ होने के नाते महसूस किया । आख़िर जिसको कोख में रख कर गढ़ा आज उसको बिखरा और उधड़ा सा देख कर कितना दर्द हो रहा होगा !
क्यों उस वकील ने इंसानियत को परे रख कर उन दरिंदों को सात साल तक बचाने की जुगत लगाई ... ? क्या आत्मिक रूप से उसे ये अहसास नहीं था कि ये ही आरोपी हैं ? आखिर क्यों एक व्यवसाय इंसानियत से ऊपर हो गया ? क्या उस वकील के औलाद नहीं है क्या उनके सुख दुख से वो सरोकार नहीं रखता ...! देर आये दुरुस्त आये। ईश्वर कहीं न जरूर मौजूद है। उसके पास बैठी निर्भया रोज शायद उनसे गुहार लगाती होगी कि अब तो उन दरिंदो को उनकी वहशीपन का बदला दो जिससे दर्द का उनको भी पता चले । ......वैसे एक क्षण में फाँसी से मरने और दरिंदगी भरे बलात्कार से मरने में बहुत अंतर है। फिर भी मरना तो मरना ही है। ईश्वर को धन्यवाद कि उसने 20 मार्च 2020 को उन दरिंदों की नियति में अंत लिख दिया । निर्भया अब तो सुकून से रहो क्योंकि अब तुम परमपिता की निगरानी में हो , और ये दरिंदे नर्क में ....आमीन !
Comments
Post a Comment