मैं ऐसी क्यूँ हूँ ... ? ?



       
मैं ऐसी क्यूँ हूँ ....! !
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मैं खुद से त्रस्त हूँ । अपनी सोच , अपनी संवेदनशीलता , अपनी भावनाएं  के उफान को क्यों काबू नहीं कर पाती ? ? क्यों उन मुद्दों पर परेशान होती हूँ जो मेरे बस से बाहर हैं। जिन्हें देश की समस्या कह सकते हैं। जो मेरे सोच लेने भर से ठीक नहीं होंगी ।  हर घटना में खुद को वहां खड़े कर के सोचना मुझे और तोड़ देता है क्योंकि तब मुझे उस तकलीफ़ का अहसास और  ज्यादा होने लगता है। आज भी निर्भया के दर्द  को महसूस करती हूँ।
           आज पूरा देश परेशान है , बन्द है , जरूरतों के आगे मजबूर है।  पर मुझें उन गरीब मजदूरों की परवाह खाये जा रही जो बिना रोजी , रोटी घर और काम के सड़क पर दिन गुजार रहे हैं। छोटे छोटे बच्चे , औरतें भूखी प्यासी थकी हारी बेहाल है। आखिर सरकार भी उन लाखों करोड़ों मजदूरों जिनके पास कोई पहचान पत्र भी नहीं होगा शायद , उनको जिंदा रहने लायक सुविधा कैसे देगी ? ?  तीन तीन चार चार दिनों से बिना अन्न का एक भी दाना खाये वो आखिर कब तक जिंदा रहेंगे।  कोरोना से बचे तो भूख मार देगी। आह ....क्या स्थिति है।  भारत की लगभग 30 से 35 करोड़ जनता गरीबी रेखा के नीचे जी रही है। वो इस लॉक डाउन का सामना कैसे करेंगे। जो रोज कमाते रोज खाते हैं। दिहाड़ी मजदूर हैं। दिल्ली बेहाल है क्योंकि हर मजदूर तकलीफ़ से भाग कर अपने गावँ जाना चाहता है।  
                आख़िर ये स्थिति सुधरने तक क्या होगा ईश्वर जाने। पर जो भी हो उससे मैं तकलीफ में ही रहूंगी। काश मेरी आवाज ईश्वर तक पहुंच जाए। सब कुछ जल्दी ठीक हो जाये। 

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