भेदभाव से प्रकृति और परमात्मा का अपमान 😞
भेदभाव से प्रकृति और परमात्मा का अपमान ...😞
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हम सब उस ऊपर वाले की रचनाएं हैं। जिसे हमारी आस्थाएँ अलग अलग तरह से पूजती है। जब हम एक ही बार के गूंथें आंटे की एक समान गोल , एक आकार की रोटियाँ नहीं बना पाते । शायद इसी तरह ईश्वर ने भी हमें बनाते समय हमारी पहचान अलग रखने के लिए कुछ भिन्नताएं कर दी। कोई पतला - कोई मोटा , कोई काला - कोई गोरा , कोई लम्बा - कोई ठिगना , कोई सुंदर - कोई बहुत ही सामान्य । ऐसे में हम सभी को इन प्राप्त विशेषताओं का सम्मान करना चाहिए। क्योंकि इन्हीं से हमारी पहचान निर्धारित होती है। दूसरों को भी, दूसरों की विशेषताओं का महत्व ये मान कर समझना चाहिए कि अगर हम सब एक जैसे दिखते तो मैं अलग कैसे होता ..?? ईश्वर की सृष्टि में करोड़ों जीव जंतु हैं । हर किसी का अपना स्थान है , अपनी उपयोगिता है और अपनी सरंचना है। हम सम्पूर्ण तभी होते हैं जब प्रकृति सम्पूर्ण रहती है। उसका बैलेंस बनाये रखने के लिए हर निर्माण की भूमिका है।
अमेरिका में रंगभेद काफ़ी पुराने समय से विवाद का कारण बनता रहा है। पर इसमें जब जब क्रूरता शामिल हो जाती है। तो यह जन विरोध बन कर प्रदर्शन और बगावत बन जाता है। अभी हाल ही में एक ★अश्वेत व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉएड★ की मृत्यु का कारण एक बार फिर ईश्वर की बनाई रचनाओं पर प्रश्न चिन्ह उठाने का कार्य कर गया। मिनिएपोलिस की श्वेत पुलिस द्वारा जॉर्ज को गिरा कर उसकी गर्दन घुटनों से दबा कर रखने और इसी वजह से उसकी साँस घुट जाने से उसकी मौत फिर से उग्र प्रदर्शन की वजह बन गयी। विरोध जायज़ है। किसी को भी इस तरह मारने का हक़ किसी को भी नहीं दिया जाना चाहिए। चाहे वह किसी भी पद पर हो। हर जान का एक खास महत्व है। विरोध में उठे स्वरों में बहुत से लोगों ने पुलिस और सरकार को व्यवस्था बदलने के लिए कहा और भविष्य में ऐसी घटनाएं ना हो ये आश्वासन माँगा । इस संदर्भ में ये कहा गया कि ये रंगभेद हमारे लिए महामारी की तरह है। हम सब उससे संक्रमित हैं और 400 वर्षों के बाद भी हम उसका टीका नहीं खोज पाए हैं । ऐसा लगता है कि हमने इसके समाधान की तलाश भी बंद कर दी है और हम बस व्यक्तिगत आधार पर घाव को ढांकने की कोशिश कर रहे हैं । क्या ये संभव है कि हम इस बदलाव की आशा रखें ... ? ?
संभव इस लिए नहीं कि जब तक हम खुद को सर्वश्रेष्ठ मानना नहीं बन्द करेंगे तब तक दूसरे की कीमत नहीं समझेंगे। जब तक हम प्रकृति की छोटी से छोटी रचना का सम्मान नहीं करेंगे , प्रकृति हमें उसका बदला देती रहेंगी। जलजले , बाढ़ , भूकम्प , महामारी , दुर्घटनाएं किसी भी रूप में .....
संभव इस लिए नहीं कि जब तक हम खुद को सर्वश्रेष्ठ मानना नहीं बन्द करेंगे तब तक दूसरे की कीमत नहीं समझेंगे। जब तक हम प्रकृति की छोटी से छोटी रचना का सम्मान नहीं करेंगे , प्रकृति हमें उसका बदला देती रहेंगी। जलजले , बाढ़ , भूकम्प , महामारी , दुर्घटनाएं किसी भी रूप में .....
★इस लिए हमारा फ़र्ज़ है कि हम भेदभाव छोड़ कर प्रकृति और ईश्वर की हर रचना का सम्मान करें और खुद को उसका सर्वेसर्वा नहीं, एक हिस्सा माने ★
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