चलो आज मन की सुनते हैं ....😊

"चलो...आज मन की सुनते हैं"
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कुछ उसको भी उसकी कहने की
आज़ादी देकर,उसकी उड़ान की
ऊँचाइयाँ परखतें हैं ।
देखें तो आख़िर उसकी सोच की हद
कहाँ-कहाँ तक जाती है ?
कितनी बार हमें अतीत में ले जाकर
प्रिय-अप्रिय स्मृतियाँ दोहराती है।
चलो एक बार फिर जाँचे कि 
ये सोच कहाँ तक जाती है
नफ़रत और प्यार में जंग करवाती है।
कितने अपनों को कटघरे में खड़ा करके
उनसे सौ सवाल करवाती है।
रिश्तों को बांधने के बजाये
उसमें अतीत की कालिख भर जाती है
नियंत्रण के लिए ये जानना जरूरी है
उसके मनोभावों को पहचानना जरूरी है
चलो ....आज मन की सुनते हैं
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