बन्धन आखिर ऐसे क्यों

बन्धन आखिर ऐसे क्यों ...!!     ••••••••••••••••••••••••

हम किसी भी हाल में जीने लायक ना रहे इसका पूरा इंतज़ाम ये क्रूर सरकार कर रही फिर भी लोग हैं कि अपनी जाति धर्म को लेकर जिंदा है। खाने के लिए जेब में पैसे रहे ना रहें पर अपनी जाति का ठस्का बना रहना चाहिए। यही तो राजनीति चाहती है और हम यही उसे परोस कर दे रहे। मर जाओ पर तथाकथित देश और इन टुच्चे नेताओं के हित में त्याग करने से पीछे मत हटो। अरे भई जीवित रहोगे , परिवार जीवित रहेगा तब ना जाति और देश देखोगे। मतलब हद है राजनीति अपने परिवार और स्वयं से ज्यादा जरूरी हो गई।                                                                अब एक नया फरमान जो अब आया है उसका क्या औचित्य है। विवाह में 5 लाख से ऊपर खर्च किया तो 99 हज़ार का टैक्स भरो। इतनी भयंकर महंगाई में 5 -7 लाख तो एक गरीब ही बेटी की ख़ुशी के लिए लगा देगा। फिर मध्यम वर्ग की सोचिए.....। उनके ऊपर तो उच्च वर्ग की तरह दिखने और निम्न वर्ग से बेहतर करने की धुन रहती है। मतलब उसे तो दोनों तरफ से पिसना है। और फिर रही बात खर्च की तो जो भी वह खर्च करेगा वह भी किसी ना किसी purchasing के रूप में ही होगा। जिसके gst वगैरह चुका कर ही उसने उसे खरीदा होगा तब दो दो बार टैक्स क्यों...जब वह already उस पर कर दे चुका तो दोबारा क्यूँ... और फ़िर एक बेटी का बाप तो वैसे ही पाई पाई जोड़ कर अपनी बेटी के लिए अच्छे से अच्छा करने की जुगत में रहता है। ऐसे में उसे और चूसना कहाँ तक उचित है। चलो बात बेटा या बेटी की ना भी हो फिर भी                     विवाह में हर परिवार सिर्फ खुशियां चाहता है और आज की तारीख में खुशियां खरीदने के पैसे लगते है। फिर उन खुशियों के लिए tax क्यों....रईसों , बड़े व्यापारियों और उद्योगपतियों से लो ना ये टैक्स, जिन्हें विवाह भी सम्बन्द्ध जोड़ने या दिखावे का मौका लगते हैं...मध्यम वर्ग और निम्न को तो बक्श दो । उन्हें जोड़ तोड़ कर खुशियां मिलती हैं।

ये जनता अपनी कब्र खुद खोदने के लिए ऐसी सरकारें चुनती है जो उन्हें नंगा करने में कोई कसर ना छोड़े। 

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