अमानवीयता की हद तक पशुता

 अमानवीयता की हद तक पशुता .....!!                        ••••••••••••••••••••••••••••••     


30 अगस्त पुणे रेलवे स्टेशन पर एक 14 वर्षीय बच्ची अकेली बैठी हुई थी। शायद किसी का इंतेज़ार कर रही थी । तभी अधेड़ ऑटो वाले ने उसे देखा ये भी महसूस किया कि वह अकेली है। उसके पास गया और उससे बात की ....पता चला कि वह अपने एक दोस्त का इंतेज़ार कर रही है। ये सुन कर वह उस समय तो स्टेशन के बाहर चला गया पर कुछ समय बाद ही वापस आ कर बोला कि तुम्हारा वह दोस्त तो स्टेशन के बाहर तुम्हारा इंतेज़ार कर रहा। चलो मैं लेकर चलता हूँ तुम्हें....                                                     अपने साथ उस बच्ची को लेकर वह उसे अपने ऑटो में ये कह कर बिठाया की दोस्त तक ले जा रहा हूँ । उसे उसने पीने के लिए पानी भी दिया। जिससे लड़की अर्धमूर्छित सी हो गई। वह उसे जंगल में ले कर गया और कई घण्टों तक उसे साथ रखकर लगातार उसका बलात्कार करता रहा....फिर उसे वह एक लॉज में लेकर जाता है। जहां पहले से ही करीब 4 से 5 नवयुवक उसका इंतेज़ार कर रहे थे । उन्होंने उसके पहुंचते ही उस लड़की को पूर्णतः निर्वस्त्र कर दिया। वह लड़की अब थोड़ी थोड़ी होश में आकर शर्मिंदा हुई जा रही थी। पर वहां उसे बचाने वाला कोई नहीं सब नोचने वाले ही थे। उन चार पांच लड़कों ने बारी बारी उसका बलात्कार करके और फ़िर 5-7 को और बुला लिया। 30 अगस्त की रात से 31 अगस्त हो गई। पर पूरे दिन ये सिलसिला चलता रहा। करीब 15 से 20 लड़के लगातार पूरे दिन उसके साथ वीभत्सता करते रहे। वो भूखी प्यासी तड़पती रही कुछ खाने और पीने को माँगती रही। लेकिन उन लड़कों की शरीर की भूख उस बच्ची के पेट की भूख से बड़ी थी।                                      वो चीखती रही चिल्लाती रही। पर उस लॉज के कर्मचारी और मालिक उसकी आवाज़ को अनदेखा करते रहे। वह हर बार अपने करीब आये हर लड़के से विनती करती रही कि उसे छोड़ दें या उसकी मदद करें। पर सबने सिर्फ उसे कुचला।  उसमें से एक लड़के को उस पर थोड़ी सी दया आ गयी और वो उसे चुपके से निकाल कर पुनः स्टेशन ले गया और मुम्बई की गाड़ी में बिठा दिया। जब रेल चली तो RPF का एक सिपाही ट्रैन में गश्त को आया और खिड़की के पास सिमट कर बैठी उस लड़की की बदहाली देखकर कुछ कुछ माजरा समझ गया। उसने उसे वही उतारा। एक महिला पुलिस के सरंक्षण में रखा और उसकी पूरे हालात समझें। अब जाकर उस लड़की को थोड़ा सुकून मिला। साथ ही उसका केस पुलिस में दर्ज करवा कर उन लड़कों के प्रति कार्यवाही शुरू की गई।                                            ये कोई मनगढ़ंत किस्सा नहीं सच्ची घटना है। और समाचार पत्रों में ये खबर भी छपी। घिन आती है। ऐसे पुरुषत्व पर और ऐसी व्यवस्था पर। जो एक बच्ची को इस कदर कुचलने का मौका बना रहा है। शर्म उन माता पिता पर भी जिन्होंने बेटा पैदा होने का गर्व तो मनाया होगा पर उसे बेटियों का सम्मान करना नहीं सिखाया। उन लड़कों क्यों नहीं अपनी भूख मिटाने की शुरुआत अपनी माँ और बहन से की.....क्योंकि तभी परिवार को ये अहसास होगा कि उनकी परवरिश में गलतियाँ रह गयी।  थू है उस कानून व्यवस्था पर जो आज तक बलात्कारी को तुरंत फांसी पर लटकाने से गुरेज करता है। जो लम्बी कानूनी प्रक्रिया में उन्हें खुद को defend करने का पूरा मौका देता है। जो पीड़ित को सरे आम एक बार फिर नंगा करता है.....!!

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