मां बाप बन कर सोचिए तो दर्द समझ आएगा
मां बाप बन कर सोचिए तो दर्द समझ आएगा : •••••••••••••••••••••••••••••
भारतीय अखबार इंडियन एक्सप्रेस अगर नहीं पढ़ा तो पढ़ना बनता है जिससे कम से कम उस घटना को परत दर परत महसूस किया जा सके । सिर्फ इस नजरिए से कि गलत स्पर्श और इच्छा विरुद्ध देह सम्बंध का आह्वान कितना विभत्स होता है।
इस चर्चा को कत्तई राजनीतिक ना बनाते हुए बस एक सवाल सभी से....क्या आप एक भी बेटी के मां पिता हैं। तो महसूस कीजिये वो वेदना जो अवांछित स्पर्श से एक स्त्री के मन में उपजती है। सार्वजनिक सवारियों में या जगहों में जब कोई पुरुष जानबूझकर पूर्णतया गलत इरादे से स्पर्श करे तो कितनी घृणा उत्पन्न होती है। और कमाल की बात ये कि वह पुरूष तो ये सब करके चला जाता है । पर भुक्तभोगी अपने शरीर को किस तरह उस छुअन से मुक्त करने का प्रयास करती है, ये काबिले गौर है।
एक स्त्री जो अपने उत्पीड़न का ज़िक्र बड़ी हिम्मत जुटा कर सामने लाती है। वह सबसे पहले अपनी इज्ज़त का जुलूस निकाल रही होती है। क्योंकि ये कोई स्टेटस सिंबल तो है नहीं .....
अगर आज भी सत्ता के पक्षधर बेटियों के हक़ में विरोध का स्वर प्रखर नहीं कर रहें तो उन्हें राहत इंदौरी साहेब की कही कुछ पंक्तियों को याद कर लेना चाहिए...
"कि लगेगी आग तो आएंगे कई घर जद में यहां सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है..." !! " जो आज साहिबे मसनद है कल नहीं होंगे किराएदार हैं जाती मकान थोड़ी है " !!
और सबसे बड़ी बात कि वो बेटियां कोई हमारी आपकी बेटियों की तरह कोई सामान्य बेटियां नहीं है। वह देश का मान बढ़ाने वाली मैडल धारक बेटियां है। जिन्हें एक समय सबने सिरमाथे बिठाया। आज उनकी पीड़ा को भी राजनीतिक चश्मे की नज़र से देखा जा रहा। ये अत्यंत क्षोभनिय है।
मैनें कई बार इस पर लिखा है कि आजकल राजनीति हमारी घरेलू ज़िन्दगी में घुस गई है। और हम जायज मुद्दों का भी राजनीतिक दृष्टिकोण से आंकलन करते है। जबकि कुछ मुद्दें पारिवारिक होने के नाते, अभिभावक होने के नाते या सिर्फ एक संवेदनशील इंसान होने के नाते हमारा सहयोग मांगते है।
देश की लगभग आधी आबादी की स्त्रियां सिर्फ अपने मान सम्मान और पवित्रता के बदौलत मजबूती से खड़ी रहने का प्रयास करती हैं। हर परिवार हर देशवासी का फर्ज है कि इसमें हम उनका साथ दें।
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