जापा मेड का नया चलन : किस हद तक घातक

जापा मेड का नया चलन : किस हद तक घातक.....!!           •••••••••••••••••••••••••••

हम क्या बन रहे , अपने इर्द गिर्द कैसी दुनिया बना रहे , किस तरह की सुविधाओं के आदी हो रहे यही हमारा भविष्य तय कर रहा है। क्योंकि पुराने समय में हम शायद कुछ पुराणपंथी सोच के साथ जी रहे थे पर उस समय हम संवेदनाओं से भरपूर हुआ करते थे। आपस में सबसे जुड़े रहते थे। जीवन के सामान्य पलों में भी सच्चा सुख ढूंढ लिया करते थे। सुख के लिए हमें शाही खर्चों की ज़रूरत नहीं होती थी। ये विषय चुनने का कारण एक नया चलन है जिसे एक स्वस्थ समाज के लिए कत्तई सही नहीं माना जा सकता....

             ये नया चलन है " जापा मेड" का। ये जापा मेड जचगी( डिलीवरी ) के बाद जच्चा (हालिया प्रसूति मां) की और नवजात की देखभाल के लिए रखी जाती है। वो मां और बच्चे की पूरी देखभाल करती है। जैसे मालिश करना , उन्हें नहलाना, उनके कपड़े धोना, उनके खाने पीने का ध्यान रखना आदि आदि ....वह सब करती है। उसे उसके लिए भुगतान किया जाता है। 

     अब इस नए चलन का खामियाजा देखा जाए। पुराने समय से जचगी...परिवार की जिम्मेदारी होती है। बनने वाली दादी , नानी अपने अनुभवों से जच्चा और बच्चा दोनों को संभालती हैं । परिवार के अन्य सदस्य जैसे बुआ, चाचा , मामा- मामी , मौसी वगैरह बच्चे को देखकर हुलसते हैं। उसे खिलाने के बहाने थोड़ी थोड़ी देर अपने पास रखते हैं। जिससे मां को आराम मिलता है और बच्चा परिवार के अन्य सदस्यों से परिचित होता रहता है। 

कुछ अन्य महत्वपूर्ण बिंदु जिसे बिल्कुल अनदेखा नहीं किया जा सकता उस पर गौर किया जाए। 

★ मां के हृदय का वात्सल्य और छाती का दूध अपने बच्चे को गोद में लेते रहने से बढ़ता है। यही सत्य है। जन्मते ही बच्चे को मां के सीने से लगा कर उसे मां के होने का और संतान को मां की धड़कनों का एहसास कराया जाता है । जो बच्चा मां की जगह काम पर रखी एक आया या मेड के हाथों पलेगा उसकी परवरिश पर क्या असर पड़ेगा स्वयं सोचिए ...

★ कोई भी शादीशुदा जोड़ा जब पहली बार मां पिता बनता है तब वह तमाम अनुभवों से गुजरते हुए परिपक्व होते हैं। उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का अहसास होता है साथ ही बच्चे के साथ पूरे समय रहने पर उससे आत्मिक लगाव जगता है।

★ तीसरा बिंदु है दादी या नानी का मूल से सूद ज़्यादा प्यारा वाला स्नेह...उनकी देखभाल अनुभव के साथ ही अंतरात्मा से जुड़े लगाव के साथ चलेगी। जबकि एक रखी गई मेड की वह सिर्फ एक काम है।

★ बच्चा पैदा करना कोई सामाजिक ड्यूटी नहीं है जिसे करने के लिए कामगार नियुक्त किये जायें। ये विवाहित जीवन के परिपक्व और परिपूर्ण होने की शुरुआत है। जिसमें तप कर ही गृहस्थी सफल बनती है।

★जब बच्चा अधिकतर समय मेड के ही हाथों में रहेगा। तो वह मां और परिवार के दूसरे सदस्यों को कितना अपना मानेगा ....क्योंकि नवजात तो सिर्फ़ स्पर्श की भाषा समझते हैं। 

★ सबसे महत्वपूर्ण बिंदु ये है कि बच्चे को पारिवारिक संस्कार और धारणाएं जन्म के बाद उसकी परवरिश में घुट्टी के तौर पर पिलाने पड़ते है। तब कोई बच्चा किसी ख़ास परिवार के एक सदस्य के रूप में बड़ा होता है।काम पर रखी गई मेड को उस परिवार के संस्कारों के बारे में क्या पता ...जो वह बच्चे को उसी अनुसार बड़ा करेगी..!!

ये तो कुछ महत्वपूर्ण पहलू हैं जिस पर रोशनी डालने का प्रयास किया गया। अन्य कई ऐसे पहलू हैं जो एक नवजात के साथ जुड़े रहते हैं। सभी को एक मेड की देखरेख से नहीं पूरा किया जा सकता। मॉर्डन बनिये पर बहुत से सच्चे सुख अनुभूति से मिलते हैं। उन्हें ना गंवाया जाए।

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