मानवीय संवेदनाओं से परे राजनीतिक व्यक्तिव्य
मानवीय संवेदनाओं से परे राजनीतिक व्यक्तित्व : ••••••••••••••••••••••••••
अब तो ये पक्का साबित हो गया कि हम राजनीतिक व्यक्ति भर बन कर रह गए। हमारे लिए मानवीय संबंद्धों की , उनसे जुड़ी पीड़ा की और उनके जीते रहने की समझ, महसूस करने की ताकत पूरी तरह खत्म हो गई है। लोगों का मरना जीना हमारे लिए सिर्फ एक सामान्य सी घटना है जो 140 करोड़ की जनसंख्या में होते रहना बहुत आम सी बात है। आम बात इसलिए क्योंकि इस घटना में मेरा कोई अपना नहीं मरा...मैं सही सलामत हूँ क्योंकि मेरी सरकार,उससे जुड़े नुमाइंदे मेरे लिए तो काम कर रहे है। जो मरे वो यक़ीनन अपनी खुद की लापरवाही से , अपनी अज्ञानता और सरकारी तंत्र में विश्वास ना रखने के कारण मरे। यही सोच लेकर चल रहे हैं ना......अच्छी है। सोचिए और सोचते रहिए। क्योंकि इस सोच को लेकर चलते हुए अगर आप आज सुरक्षित महसूस कर रहे तो यकीनन कल आपके बच्चों का भविष्य भयावह है। ये क्यों ...इसका मर्म समझिए !! जब हम संवेदनहीन, करुणाविहीन,परानुभूतिविहीन होते जा रहे तो हम अपने बच्चों के लिए उस समाज की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं जो हमारे ना रहने पर उनके दुःख दर्द में साथ खड़ा होगा। जो बोया जा रहा काटना भी वही है। अवहेलना, नफ़रत, अवज्ञा आदि हमारे बच्चों के संस्कार इसीलिए बन जाएंगे क्योंकि आज हम उनको अहमियत दी रहे।
जो भविष्य हम बना रहे उसमें किसी की मौत पर कोई दुःखी नहीं होगा। क्योंकि हर कोई हर किसी दूसरे को 140 करोड़ में से सिर्फ़ एक समझेगा। उसे उसके दर्द का अहसास इसलिए नहीं होगा कि उसे उससे कोई सरोकार नहीं।
बढ़िया है ख़ूब राजनीतिक बनो। देश के बारे में भी राजनीतिक नज़रिए से सोचो। विदेश के बारे में चर्चा में अपनी देश भक्ति को सर्वश्रेष्ठ दिखाने के चक्कर में उसे कम आंको। बस अगर ध्यान नहीं देना है तो बस आस पास के लोगों पर उनकी स्थिति पर , उनके दुःख दर्द पर, उनके साथ हुए हादसों पर, उनकी जरूरतों पर .....क्योंकि वो बस 140 करोड़ में एक मामूली हैं और मैं ख़ास इसलिए क्योंकि मैं अपनी सरकार अपने देश की विचारधारा को सम्मान देता हू ।
रेल हादसे में 300 से ऊपर लोग मर गए । घर से कितने उत्साह से निकले होंगे। खाना बना के पैक किया होगा। कहीं जाने के लिए अच्छे कपड़ों का बैग तैयार किया होगा। परिवार को साथ लेकर घूमने का भी इरादा होगा। बस एक झटके से क्षण भर में सब खत्म हो गया। जिन्होंने घर से उन्हें विदा किया होगा क्या पता था कि इस तरह क्षत विक्षत तरह से उन्हें टुकड़ों में मौत मिलेगी।
अगर आज कोई भी इस तरह से नहीं सोच पा रहा तो शर्तिया वह राजनीतिक बन चुका है। उसके अंदर की मानवीय संवेदनाएं मर चुकी हैं। और वह एक जॉम्बी की तरह सत्ता के इशारे पर खुद को सर्वथा व्यक्त करता रहता है।
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