विषमताओं से त्रस्त मानसिकता का प्रतिरोध
विषमताओं से त्रस्त मानसिकता का प्रतिरोध : ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
एक बहुत ही दुःखद और विस्मयकारी घटना सामने आई जिसे जानकर उस की वजह पर बात करना जरूरी लगा। दिल्ली के पास गाजियाबाद में एक रियल इस्टेट कारोबारी के घर एक खाना बनाबे वाली महिला पिछले आठ साल से काम कर रही थी। जो रसोई के सभी कार्य संभालती थी। धीरे धीरे परिवार के सदस्यों की तबियत खराब रहने लगी। डॉ को दिखाया गया। पर दवाइयां भी असर नहीं कर रही थी। रसोई से दैनिक काम आने वाली चीजें भी अक्सर गायब हो रही थी। तो स्थिति का जायजा लेने के लिए कारोबारी ने एक दिन मेड के आने से पहले रसोईघर में अपने फ़ोन को रेकॉर्डिंग मोड पर करके रख दिया। जिससे पता चले कि आखिर रसोई में होता क्या है...
और जब उसकी रिकॉर्डिंग देखी गई तो सबके होश उड़ गए और घिन के चलते सभी उबकाईयां लेने लगे। उस काम वाली ने जब आटा गूंथने के लिए निकाला तो उसे साफ पानी से नहीं गूंथा। एक बर्तन लेकर उसमें यूरिन किया और फिर उसी से आटा गूंथा। फिर उसकी रोटियां बना कर बच्चों को टिफ़िन में रखीं और बाकी बची कटोरदान में दूसरे सदस्यों के लिए रख दी। फ़िर एक पॉलीथिन लेकर उसमें आलू प्याज़ टमाटर वगैरह कुछ बांधकर कपड़ों में छिपाया।
इस घटना का मनोवैज्ञानिक पहलू देखें तो ये महसूस होगा कि इसका कारण मजदूरी का उचित मूल्य ना मिलना, शारिरिक मानसिक शोषण, अशिक्षा , साधनों की महंगी पहुंच और सबसे महत्वपूर्ण पर पीड़ा में आनंद जैसी समस्याओं की समग्र परिणीति है।
ये कहानी आर्थिक विषमताओं से शुरू होती है। एक व्यक्ति जब दूसरे के घर में वह संपन्नता और समृद्धि देखता है जो उसकी पहुंच से कोसो दूर हैं। तो ये कुंठा को जन्म देता है। जिस चीजों की वह सिर्फ कल्पना कर सकते हैं। उन्हें कुछ लोग अथाह पैसा होने के कारण बहुत ही आसानी से खरीद लेते हैं ।
इसका दूसरा महत्वपूर्ण कारण है। उचित मेहनताना ना मिलना। इसी खीज के चलते कामवाला कोई अनर्गल हरकत करने लगता है। ऐसे लोग शिक्षित होना भी जरूरी नहीं समझते। क्योंकि छोटी उम्र से थोड़ा बहुत कमाने की जिद में वो पूरी उम्र फिर थोड़े पर ही अटक कर रह जाते हैं। क्योंकि जैसी शिक्षा वैसा काम....
अब मूल घटना पर विचार करते हैं। कि यक़ीनन इस महिला की मानसिकता बेहद गंदी थी। क्योंकि नफ़रत इस हद तक घृणित बना दे ये तो सही नहीं है। गलती उस कारोबारी परिवार की भी है। क्योंकि नए चलन में अब नौकरों से काम करवाना रईसी का शगल बन गया है। खाना जैसा महत्वपूर्ण काम जिसमें सफ़ाई, प्रेम और इच्छा सभी शामिल होना चाहिए। वह भी कामवाली बना रही। घर की औरतें रसोई में झांकना भी जरूरी नहीं समझतीं।
ब्रम्हकुमारी वाली शिवानी दीदी कहती हैं। जैसा अन्न वैसा मन...... अर्थात जिस नियत से खाना बनाया जाएगा। खाने वाले कि वही मनःस्थिति हो जाएगी। कामवाला अपनी पगार के चलते वो काम कर रहा।
जबकि एक माँ पत्नी या गृहणी अपने परिवार के सदस्यों का स्मरण करके वह काम करेगी।
किसे क्या पसन्द है....
कौन से ऐसी चीज़ बने जिसमें भरपूर पौष्टिकता हो..
नमक, शक्कर, मसालों, तेल घी का अनुपात सबके स्वास्थ्य के हिसाब से तय किया जाएगा....
कब कौन किस समय खाना पसंद करेगा। वह समय ध्यान रखा जाएगा...
साथ ही जब घर की औरत खाना बनाएगी तो उसमें और कुछ हो ना हो प्यार तो भरपूर मात्रा में रहता है। ....
ये तो वही बात हो गई कि जब बीमारी में डॉ को दिखाने जाओ अगर वह प्यार से पूछ ले, सुन ले, ठीक हो जाने को आश्वस्त कर दे तो आधी बीमारी तो वही बिना दवाई के ख़त्म हो जाती है।
यही हाल मां के हाथ के खाने का है। वह प्यार ही उस भोजन को सबके तन को लगाने के लिए काफ़ी होता है।
तो सारी स्थिति को समझने के बाद सार यही निकलता है। कि atleast रसोई किसी अन्य के हवाले नहीं करनी चाहिए। ये परिवार के स्वास्थ्य , सुख और निष्ठा से जुड़ा कार्य है। जो भी थोड़ा बहुत होए खुद करना चाहिए। अगर मदद लेनी भी है तो अपनी उपस्थिति में ही मदद ली जाए। जिसकी निगरानी होती रहे। लेकिन रसोई की सर्वेसर्वा तो घर की औरत ही हो क्योंकि वही गृहलक्ष्मी है वही अन्नपूर्णा.....🙏
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