विचारों के दर्जी बनें
विचारों के दर्ज़ी बनें : ••••••••••••••••••••
जब हम कपड़े सिलवाने जाते हैं तो बदन हमारा होता है। नाप हमारा होता है। डिज़ाइन भी हम ही चुनते हैं। कपड़ें भी हम ही दर्ज़ी को देते हैं। पर उसे हमारे पहनने लायक दर्ज़ी बनाता है। और उसकी सिलाई की ही खूबी होती है कि वह कपड़ा पहनने पर हम पर फबता है।
बस इसी तरह हम को दर्ज़ी बनना है। बाहरी दुनिया से बहुत तरह के विचार , स्थितियां और परिपेक्ष्य सामने आते रहते हैं। उन्हें उसी रूप में स्वीकार लेना अपनी आइडेंटिटी को खत्म करना होगा। इसलिए आने वाले समस्त विचारों को हमें दर्ज़ी बनकर उसको कांट छांट कर अपने अनुसार बना कर स्वीकारना है।
विचार दो प्रकार के हो सकते हैं। एक किसी दूसरे से आये हुए विचार और दूसरा अनुभवजन्य विचार....अच्छे विचारों का चयन उसको कांट छांट कर अपने अनुसार ढाल कर किया जा सकता है। उनका सदुपयोग करने के लिए उसे आईडिया में बदल कर इम्प्लीमेंट करें। क्योंकि विचार जब इरादे बनते हैं तभी वो कार्यान्वित होते हैं।किसी भी अच्छे विचार की पहचान उसकी गहराई, शुद्धता और स्पष्टता से समझी जा सकती है। हमारी समझ उसके आगे पीछे का समझने की काबिलियत रखती है। तो उसे अच्छे से समझना जरूरी है।
दर्जी का मानना ये होता है कि कपड़े पर अगर जरा भी सुई या कैंची गलत चल गई तो कपड़ा ख़राब होयेगा या आकार बदल जायेगा। जो बदन पर पड़ कर कत्तई अच्छा नहीं लगेगा। इसी तरह विचारों के भी चयन में उसकी कांट छांट में सावधानी रख कर उसे स्वीकारना होगा।
कभी कभी कुछ बाहरी दबाव भी होते हैं जो हमें उस विचार को अपनाने के लिए बाध्य करते हैं। पर उन बाहरी दबाव को दूर करने के लिए कुछ समय के लिए ही सही हमें उस जगह से , उस स्थिति से और उस व्यक्ति से विमुख होना पड़ेगा। क्योंकि हर कोई एक विचार निर्णय बन कर हमारी ज़िंदगी को प्रभावित कर रहा तो ये सिर्फ़ किसी को खुश करने के लिए नहीं अपनाया जा सकता।
इसलिए हम ही दर्ज़ी है। हमारे विचारों के लिबास के...उसे इस तरह से कांट छांट कर अपने आकार में ढ़ालिये की लगे कि वह सिर्फ आपके लिए ही बना है। भले ही वह किसी अन्य रूप में हमारे सामने आया हो...!!
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