आख़िर आज़ादी चाहिए ही क्यों...!
आख़िर आज़ादी चाहिए ही क्यों: ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज़ादी के एक खास तरह के ख्वाहिशमंद शायद आपसे भी मिले होंगे.... !
पुरुष एक स्त्री के साथ और स्त्री एक पुरुष के साथ विवाह या प्रेम संबंध में बंधना नहीं चाहते। क्योंकि उन्हें आज़ादी से जीना है। अब जरा सोचिये, ये आज़ादी किस चीज़ से है..... ?
हर रिश्ते से कुछ अधिकार और कुछ कर्तव्य या जिम्मेदारियाँ पैदा होती हैं। आप चाहते हैं कि रिश्ता तो बने लेकिन हम जिम्मेदारीयों से दूर रहें तो ये तो हो नहीं सकता है ना। फिर भी अगर आप यही चाहते हैं तो आपके लिए बाजार है, बाजार बहुत सी स्थूल चीजों का कारोबार करता है, लेकिन वहां प्रेम,वात्सल्य, करुणा , लगाव, अपनापन जैसी चीजें नहीं मिलती। ये सब ना तो खरीदी जा सकती है और न बेची जा जा सकती है।
तो इन सब एहसासों के लिए तो किसी ना किसी रिश्ते को स्वीकारना होगा। चाहे वह किसी इंसान से हो पशुपक्षी से हो या प्रकृति से....कोई तो जुड़ाव किसी से तो होगा....जहां मन लगे....जहां ठहरना अच्छा लगे...जहां सुकूँ मिले।
एक बार विचार कीजिये, ऐसा कौन सा रिश्ता है जिससे कोई जिम्मेदारी नहीं निकलती ! और क्या आप बिना रिश्ते के जी पाएंगे ? आपको पुरुष के साथ या स्त्री के साथ नहीं बंधना है, पर शरीर की ज़रूरत आपको वहां खींच ले जाती है, कुछ पल के लिए आप बंध तो जाते ही हैं। फिर उन पलों की अपनी तमाम हरकतों को याद कीजिये, क्या प्रेम के बिना ये सब मुमकिन है ! और जहां ये हरकतें न होंगी, आप इंसान कम रोबोट ज़्यादा लगेंगे। जिसमें हिलने डुलने की प्रवृति तो डाल दी गई। पर भावनाएं नहीं है।
ये सब बाजार की देन है और यही बाजार हर ज़रूरत हर एहसास को मुनाफे में बदलना जानता है, लेकिन बाजार आपको सूकून नहीं दे सकता।
रिश्ते ज़रूरत भी हैं और जज़्बात के मोज़ाहरे का ज़रिया भी, आप इंसानों से भागेंगे तो कुत्ते बिल्ली पर ठहरेंगे, क्योंकि प्रेम देना और प्रेम पाना आपकी भी ज़रूरत तो है ही न ! प्रकृति भी प्रेम और देखरेख से ही पनपती है। इसलिए ये लगाव और जिम्मेदारी की भावना तो हर कहीं हर जगह हर समय ही जीवन का आधार है। क्या आप एक गमले में फूल का पौधा लगाते हैं या छोटी सी कांच की बाउल में मछलियां रख लेते हैं। तो उनकी जिम्मेदारी नहीं उठानी पड़ती ? उनकी देखरेख नहीं करनी पड़ती ? ये यो प्रकृति और जीवन का नियम है। जुड़ोगे तो निभाओगे और निभाओगे तो खुशी पाओगे। हां ये भी सत्य है कि जिम्मेदारियाँ पीड़ा भी लेकर आती है। इसीलिए आज के नई zen- g इससे भाग रही। पर ये पीड़ा उस अपनेपन का सबूत है जो जुड़ने के बाद मिली है। और यही जुड़ाव कभी अपार खुशियां भी तो देता है।
★★★★★★★★★★★★★★★
Comments
Post a Comment