प्रकृति की चुनौती ....🌳
प्रकृति की चुनौती …………… !
जब कभी मानव प्रकृति को चुनौती देने की कोशिश करता है। प्रकृति उसे अपने मजबूत होने का अहसास दिला देती है। इस वर्ष कुछ ऐसा ही देखने में आ रहा है। यूँ तो अप्रैल का महीना गर्मी बढ़ने का संकेत देता है और विद्यालयों के नए सत्र के आगाज के साथ पंखे , कूलर , आइसक्रीम , शेक्स और एयर कंडीशनर का समय लाता है। जिन का अपना ही मजा होता है। पर अभी तक ये महीना न जाने कितने लोगो को निराशा की खाई में धकेल चूका है। लगातार हो रही वर्षा , ओले , तूफानी हवाएं और चट्टानें खिसकने की घटनाएं ने महीने का पूरा गणित ही बिगाड़ कर रख दिया है। सामान्यतः जुलाई माह के साथ वर्षा की शुरुआत होती है और ये सितम्बर तक चलती है। प्रकृति ने भी फसलों के साथ वर्षा का तालमेल ऐसा बैठाया है की उस समय की वर्षा फसलों के लिए वरदान साबित होती है। पर अब जो मौसम ने करवट ली है उससे सामान्य जन सिर्फ हानि और पछतावा हांसिल कर रहा है। प्रकृति के चलते ही हमारा जीवन संभव है। ये जब इंसान को समझ आएगा तब शायद प्रकृति भी अपना रौद्र रूप दिखाना कम करेगी। अभी जो कुछ प्रकृति कर रही है वह एक सबक है पूरी मानव जाति के लिए कि जब जब प्रकृति को छेड़ कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने का प्रयास किया जाएगा , वह ऐसे ही तांडव मचा कर लोगो को तहस नहस करती रहेगी।
संतुलन की आवश्यकता को महसूस कर के हरियाली और विकास में सही तारतम्य बैठाना जरूरी है। आज सरकारें सिर्फ औद्योगिक विकास को प्राथमिक मानती है। जबकि कोई भी देश बिना हरित विकास के आगे नहीं बढ़ सकता। हालाँकि रोटी कपडा और मकान जैसी आवश्यकताओं पर जोर दिया जाता है पर एक इंसान की सबसे पहली आवश्यकता अन्न होती है। भूख किसी भी जरूरत से ज्यादा बड़ी है। इस का समाधान एक कृषक ही कर सकता है। उद्योगों में मशीनों के जरिये अन्न नहीं पैदा किया जा सकता। इस लिए हरियाली और खेती को बनाये रखना देश और जन के लिए आवश्यक है। चाहे कही का भी उदाहरण ले लें देश या विदेश , हर जगह प्रकृति तूफ़ान , ज्वालामुखी , सुनामी , बर्फ़बारी आदि जैसे कहर बरपा कर इंसान को अपने ताकतवर होने और उसके तिनके के सामान होने का अहसास कराती रहती है। फिर भी मानव नहीं चेतता और बेवजह अपनी जान जोखिम में डाल देता है। अब भी समय है जब हमें जल वायु और पृथ्वी की ताकत को खुद से बड़ा मान कर उन्हें सम्मान देने पड़ेगा। उन्हें उनकी जगह पर बनाये रखना पड़ेगा।
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जब कभी मानव प्रकृति को चुनौती देने की कोशिश करता है। प्रकृति उसे अपने मजबूत होने का अहसास दिला देती है। इस वर्ष कुछ ऐसा ही देखने में आ रहा है। यूँ तो अप्रैल का महीना गर्मी बढ़ने का संकेत देता है और विद्यालयों के नए सत्र के आगाज के साथ पंखे , कूलर , आइसक्रीम , शेक्स और एयर कंडीशनर का समय लाता है। जिन का अपना ही मजा होता है। पर अभी तक ये महीना न जाने कितने लोगो को निराशा की खाई में धकेल चूका है। लगातार हो रही वर्षा , ओले , तूफानी हवाएं और चट्टानें खिसकने की घटनाएं ने महीने का पूरा गणित ही बिगाड़ कर रख दिया है। सामान्यतः जुलाई माह के साथ वर्षा की शुरुआत होती है और ये सितम्बर तक चलती है। प्रकृति ने भी फसलों के साथ वर्षा का तालमेल ऐसा बैठाया है की उस समय की वर्षा फसलों के लिए वरदान साबित होती है। पर अब जो मौसम ने करवट ली है उससे सामान्य जन सिर्फ हानि और पछतावा हांसिल कर रहा है। प्रकृति के चलते ही हमारा जीवन संभव है। ये जब इंसान को समझ आएगा तब शायद प्रकृति भी अपना रौद्र रूप दिखाना कम करेगी। अभी जो कुछ प्रकृति कर रही है वह एक सबक है पूरी मानव जाति के लिए कि जब जब प्रकृति को छेड़ कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने का प्रयास किया जाएगा , वह ऐसे ही तांडव मचा कर लोगो को तहस नहस करती रहेगी।
संतुलन की आवश्यकता को महसूस कर के हरियाली और विकास में सही तारतम्य बैठाना जरूरी है। आज सरकारें सिर्फ औद्योगिक विकास को प्राथमिक मानती है। जबकि कोई भी देश बिना हरित विकास के आगे नहीं बढ़ सकता। हालाँकि रोटी कपडा और मकान जैसी आवश्यकताओं पर जोर दिया जाता है पर एक इंसान की सबसे पहली आवश्यकता अन्न होती है। भूख किसी भी जरूरत से ज्यादा बड़ी है। इस का समाधान एक कृषक ही कर सकता है। उद्योगों में मशीनों के जरिये अन्न नहीं पैदा किया जा सकता। इस लिए हरियाली और खेती को बनाये रखना देश और जन के लिए आवश्यक है। चाहे कही का भी उदाहरण ले लें देश या विदेश , हर जगह प्रकृति तूफ़ान , ज्वालामुखी , सुनामी , बर्फ़बारी आदि जैसे कहर बरपा कर इंसान को अपने ताकतवर होने और उसके तिनके के सामान होने का अहसास कराती रहती है। फिर भी मानव नहीं चेतता और बेवजह अपनी जान जोखिम में डाल देता है। अब भी समय है जब हमें जल वायु और पृथ्वी की ताकत को खुद से बड़ा मान कर उन्हें सम्मान देने पड़ेगा। उन्हें उनकी जगह पर बनाये रखना पड़ेगा।
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