अंदर का व्यापार

 अंदर का व्यापार ....!!         •••••••••••••••••••••••

हम अपनी जीविका चलाने के लिये काम धंधा करते है। परिवार और घर चलाए रखना ही सामाजिक जिम्मेदारी है। जिसके लिए दिन के दस से बारह घण्टों का उपयोग हमें अपने काम को सम्भलने बढ़ने और फलने फूलने को देना पड़ता है।

लेकिन क्या कभी अपने अंदर एक उद्यम लगा कर विचारों के व्यापार की सोच पाली। अर्थात जो कुछ भी चाहिए वो स्वतः हाँसिल नहीं होता। उसे create करना पड़ता है। और उसे create करने के लिए सबसे पहले उस से सम्बंद्धित विचारों को मन में उतपन्न करना पड़ता है। 

बस यही उद्यम लगाने की बात है। एक फैक्ट्री मन में बनाई जाए जहां चाहने वली हर चीज़ के लिए सकारात्मक विचारों की productivity बढ़ाई जाए। जिससे उसे हाँसिल करने में आने वाली अड़चनों का आभास पहले से करके उसके निवारण के तरीका सोचा जा सके। 

दिन भर जो भी परिस्थिति रहे उसके गुजरते हुए हम बस वही सोच मन में पैदा करे जो हमें सुकून से भर दे । सामने कोई भी नकारात्मक स्थिति , व्यक्ति या बात हो पर हम अपनी मन को उसकी फैक्टरी में produce विचारों से ही लाहलहायेंगे। कुछ इस तरह हम सब अपनी ज़िन्दगी में शांति , धैर्य और सुकून लाएंगी।

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