महिला खुद में सक्षम
महिला ख़ुद में सक्षम : •••••••••••••••••••••••
आज के आधुनिक समय कोर्ट को दखलंदाजी करके स्थिति सम्भालनी पड़े तो यह हम सब के लिए गर्व की बात नहीं हैं। क्योंकि अगर हम एक तरफ खुद को मॉडर्न कहते हैं दूसरी ओर अभी भी बहुत सी पुरानी दकियानूसी परम्पराओं और बातों को साथ लेकर चल रहे हो। तो कोर्ट के जरिये उस स्थिति को सम्भालना पड़े।
एक वास्तविक घटना से इसे समझा जाये। सुनिता नाम की एक महिला लिव इन में कैदी पुरुष के साथ रहती थी। गर्भवती होने पर उस पुरुष और स्वयं उसके माँ पिता ने उसका साथ छोड़ दिया। ऐसी स्थिति में उसे बच्चे को जन्म देने के बाद किसी अन्य को गोद देने के लिए बाध्य होना पड़ा। क्योंकि वह अकेले उसे पाल पाने में सक्षम नहीं थी और समाज का सहयोग भी नगण्य था।
लेकिन सुनीता ने इस बात को कोर्ट तक पहुंचाया कि अकेली माँ क्यों नहीं अपने बच्चे को पाल सकती। क्या उसे कुछ आर्थिक मदद के तौर पर काम नहीं दिया जा सकता ? ?
अब केरल की कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि महिला को लगता है कि वह पुरुष के सपोर्ट के बिना कुछ नहीं तो हमारा सिस्टम बेकार है। हम चाहे कितनी भी तरक्की कर ले। औरतों को सिर्फ धर्म में ही देवी मानते रहेंगे। वास्तविकता में कत्तई नहीं। कोर्ट ने ये भी कहा कि जहां स्त्रियों का सम्मन नहीं वहां कितने भी अच्छे कर्म कर लो सब निष्फल हो जाएंगे।
सुनीता के केस में सबसे पहले तो वह युवक दोषी है। जो साथ तो रह रहा था पर जब जिम्मेदारी और नाम साझा करने का समय आया। उसने साथ छोड़ दिया।
चाहे मोरडर्निटी के नाम पर कोई कितना भी लीव इन रिलेशनशिप को जस्टिफाई करे पर यकीन में ये व्यवस्था विदेशों के लिए ही सही है। क्योंकि वहां औरतें काफी हद तक खुद सक्षम होती है। पर भारतीय व्यवस्था में जब कि औरतें हाउस वाइफ की तरह साथ रहती हैं। छोड़ दिये जाने पर बिल्कुल अकेली हो जाती है।
हाँ ये सच स्वीकार किया जा सकता है कि एक औरत किसी भी रूप में पुरुष के लिए निर्भर नहीं। वह स्वतंत्र है और अपने निर्णयों को ख़ुद लेने और सम्भलने में सक्षम है।
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