सकारात्मकता और नकारात्मकता की पॉवर का अंतर

 सकारात्मकता और नकारात्मकता की पावर में अंतर ...!!                                  ••••••••••••••••••••••••••••••  क्या हम सकारात्मकता और नकारात्मकता की पावर के अंतर को समझतेें हैं ? ?  जिस दिन हम यह समझ जाएंगे अपने व्यवहार के खुद मालिक होंगे। इस तथ्य को इस नज़रिए से समझा जाये। हम अच्छे खासे मूड में बैठे हों अचानक कोई आ कर कोई ऐसी बात हमें कह दे या बता दे जिससे हम परेशान हो जाएं। अनर्गल सोचने लगे तो हमारे ऊपर नकारात्मकता हावी होने लगी है। हम अपने अच्छे मूड में जो भी सकारात्मक सोच रहे थे वो अचानक से बदल गया। अब हम सिर्फ तनाव में हैं और परेशान इंसान सिर्फ बुरा ही सोचेगा।                                                 लेकिन इसका दूसरा पहलू देखिए। जब किसी दूसरे ने हमारे अच्छे विचारों में खलल डाला तो हमने अपनी सकारात्मकता की शक्ति इतनी मजबूत कर ली कि हमारे ऊपर वह बुरी बातें असर ना डालें तो ऐसे में हम खुद को और सामने वाले दूसरे को भी अच्छाई से प्रभावित करेंगे। आखिर वह भी कब तक दीवार से सर फोड़ेगा। कोई प्रतिक्रिया ना देखकर शांत हो जाएगा।                                                                     ऐसे में ये समझना आसान है कि दोनों की पावर में क्या अंतर है। हालांकि नकारात्मकता में भी बहुत पावर होती है। जो दिमाग खराब करने और स्थिति बिगाड़ने में बड़ी जल्दी सहायक हो जाती है। पर फिर भी सकारात्मकता की  फैलने की गति बहुत अधिक होती है। ये जब बिखरती है तो बहुत सारे लोगों और माहौल को अपने प्रभाव में लेती है। यही इसकी खासियत है।

उदाहरण के लिए समझिए कि किसी फिल्म का कोई sad सीन चल रहा हो। जो बहुत संवेदनशील होंगे वो प्रभावित होंगे।  उनके दो चार आंसू भी गिरेंगे।  पर फिर भी कुछ लोग इसे महज़ एक फिल्माया हुआ सीन मानकर देखेंगे। पर वहीँ कोई हंसने वाला मज़ाकिया  सीन चल रहा हो तो सभी की हंसीं फूट पड़ेगी। सब खिलखिला कर हंसने लगेंगे।       इसलिए खुद को और सबको खुश रखने के लिए वह करा जाए जिसकी पावर ज्यादा हो जो अधिक spread होता है। अर्थात "सकारात्मकता".....!!

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