वर्तमान की भयावह त्रासदी

वर्तमान की भयावह त्रासदी....!! •••••••••••••••••••••••••••••

शायद कोई महसूस नहीं कर पा रहा कि आज के दौर में हम अपना जीवन नहीं बल्कि राजनीति को जी रहे हैं। राजनीति अर्थात सिर्फ देश के लिए जीने की बात। लेकिन इस राजनीतिक जीवन जीने के पीछे की दो बातें महत्वपूर्ण हैं। पहली ये की हमने अपने और परिवार की जरूरतों को देश से पीछे कर दिया है। दूसरी ये कि ये बाध्यता की उम्मीद सिर्फ़ हम पूरी कर रहे हैं। वह नेता नहीं जो राजनिति के सर्वेसर्वा बन कर बैठे हैं। देश के लिए निर्णय , देश के लिए त्याग , देश के लिए प्रयास , देश के लिए उनके लागू किये गए ऊलजलूल फरमानों की पाबन्दगी....ये सब हम यानी जनता करेगी। क्योंकि उनको तो सिर्फ़ नीतियां लागू करने के लिए हमने सवैधानिक अधिकार दे दिया। 

    पिछली कई दशकों की राजनीति उठा कर देख लिया जाए तो ये पाएंगे कि किसी ना किसी वजह को आधार बना कर ये नेता जनता को कठपुतली की तरह इस्तेमाल करते हैं। और फिर जब उन्हें उनकी मनचाही जगह मिल जाती है तब वही जनता की जरूरतें नगण्य हो जाती हैं। क्यों नहीं ये सोचा जाता कि हम हमारा परिवार जिंदा रहेगा खाता पीता रहेगा तब तो देश चलेगा। इन नेताओं और एक आम जनता के रहन सहन का अंतर क्यों नहीं दिखाई देता ? ? क्यों नहीं दिखाई देता कि सुख सुविधाएं उनके कदमों में पड़ी रहती है और बहुत से लोग रोज की रोटी की जुगाड़ में भिड़े रहते हैं। राजनीति में रुचि वही तक अच्छी है जब तक कि उस के द्वारा लिए जा रहे निर्णयों के परिवार पर असर ना पड़ रहा हो !! सौ रुपया पेट्रोल खरीदेंगे क्योंकि देश के लिए ये किया जा रहा है तो क्या बच्चे भी देश के नाम पर पैदा किये गए हैं ? ? ये एक मजाक था लेकिन इस मज़ाक में जिंदगी की कटुता छिपी है। उनका हक राजनीति को क्यों छीनने दे रहे हो। 

  आपकी बचत , आपका भविष्य ,आपके परिवार के सुख , आपके परिवार की खुशियां देश से बड़ी हैं । देश के लिए उन नेताओं को सोचने दीजिए जिन्हें आपने कुर्सी दी हैं। उनसे त्याग और जिम्मेदारी की उम्मीद करिये। वो कोई भगवान नहीं है। जब हम जीवित होंगे तो हमारे साथ हमारा नाम हमारा धर्म , हमारी जाति , हमारा परिवार , हमारा समाज और उसके बाद ये देश अस्तित्व में रहेगा। देश के नाम और हम तो त्याग करते करते मर जायेंगे और इस देश को धेले का फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला। क्योंकि उसे चलाने वाले हम नहीं ये राजनीतिक घाघ हैं जो सत्तासीन हैं । 

इसलिए अब समय आ गया राजनीतिक बन कर देश का सोचने के बजाए सामाजिक बनिये। अपना ,अपने परिवार का ,अपने समाज का सोचिए। आपके व्यक्तिगत फायदे से परोक्ष रूप में देश को ही फायदा हो रहा। लेकिन ये कटु सत्य है कि आपके व्यक्तिगत त्याग से देश को नहीं इन मतलबपरस्त सत्तासीनों को फायदा हो रहा है। जरा सोचिए और राजनीति से इतर खुद को सामाजिक बनाइये।

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