संदेह समझदारी को जन्म देता है

संदेह समझदारी को जन्म देता है :

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संदेह समझदारी को भी जन्म देता है। ये बात सुन कर अजीब सा लगेगा पर कुछ हद तक ये सत्य है। क्योंकि संदेह तर्क की शक्ति पैदा करता है और सार्थक तर्क ज्ञान बढ़ाता है। 

संदेह कार्यों में खामियां ढूंढता है। और खामियां उस कार्य को और बेहतर करने के लिए उकसाती हैं। कोई भी इंसान अगर ये सोच ले कि मैनें वो हर गलती की जो मैं कर सकता था। पर उसी गलती को सुधारा कैसे जाए ये प्रयास भी उसी गलती से ही निकला तो जीवन हमेशा उच्चस्तरीय होता रहता है।

अच्छा दिमाग या तर्कशक्ति लगभग सभी के पास हो सकती है। पर विचारों को स्थिर रखना आगे बढ़ना नहीं होता उसके लिए विचारों में मंथन जरूरी है। यही मंथन अमृत के  रूप में सर्वसुलभ हल प्रदाय करता है। 

लोग संदेह को गलत समझते हैं पर संदेह यदि रचनात्मक हो तो ये नई विधा को जन्म देता है। संदेह और निरंतर प्रयास के लिए प्रेरित करता है और निरन्तर प्रयास परिपक्वता बढ़ाते है। व्यक्ति पारंगत बनता जाता है। हर प्रयास में थोड़ा भिन्न परिणाम भी एक अनुभव होता है। जिससे परिस्थितिनुसार परिणाम का बदलाव स्वीकार करने की हिम्मत मिलती है।संदेह समझदारी को जन्म देता है और समझदारी जीवन में विजय दिलाती है। 

हम जैसे खुद को देखते हैं हमारी क्षमता उससे ज्यादा है ये सिर्फ़ तब यकीं होगा जब हम खुद के किये पर थोड़ा संदेह करके उसे अगली बार और बेहतर करने की कोशिश करेंगे। यही परिष्कृत होने का सफल फॉर्मूला है।  इसलिए दूसरों के लिए संदेह रखने से बेहतर खुद के दायरे में संदेह को थोड़ी सी जगह दें । यकीन मानिए और बेहतर बनेंगे। 

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