बलात्कार अब राजनीति है

 बलात्कार अब राजनीति है : ••••••••••••••••••••••••••

क्षमा कीजिये पर अब बलात्कार, बलात्कार नहीं राजनीति है। क्योंकि जिस तरह बलात्कारी अपना फायदा देखता है उसी तरह राजनीति भी उसमें सिर्फ लाभ देखती है। उसमें कहीं भी एक औरत की पीड़ा शर्मिंदगी और टूटन नहीं शामिल होती। होगी भी क्यों .....

"औरत है ही सिर्फ़ मर्दों को खुश करने की चीज़।" 

बुरा लगा होगा ये पंक्ति पढ़ कर पर यही सच है। मर्द ख़ुश है क्योंकि उसका घर चल रहा मर्द ख़ुश है क्योंकि उसे अपने DNA के पैदा हुए बच्चे मिल रहे, मर्द ख़ुश है कि उसे प्रेम से पकाया परोसा भोजन मिल रहा, मर्द ख़ुश है कि घर बैठे उसकी शारिरिक जरूरतें पूरी हो रहीं....बस मर्द ख़ुश है। 

         यही मर्द जब राजनीति करने लगते हैं तब उन्हें औरतें भी राजनीतिक मोहरा लगने लगती हैं। जिन्हें कभी भी कितनी भी चाल चल कर आगे बढ़ाया जा सकता है। भले ही इसमें उनकी जान पर भी बन आये।

 रोज अखबार उठाकर पढ़ते समय जब किसी मासूम पर या किसी भी स्त्री पर बलात्कार की खबर दिखती है तब तब हर बार पुरुषों की मानसिकता पर घृणा होने लगती है। कोई ऐसा दिन नहीं होता जब अखबार इस तरह की खबरों से खाली हो।

डिजिटल तरक्की ने इस समस्या को और विकराल कर दिया। क्योंकि हर हाथ इंटरनेट और इंस्टा ने क्षणिक रील्स के जरिये बहुत कुछ अनर्गल परोसना शुरू कर दिया है। जो उम्र सम्भलने की होती है उसमें वासना के बीज बोए जा रहे हैं। तो किस तरह के पेड़ की कल्पना की जा सकती है। जो अधेड़ या बुजुर्ग घर से औरत विहीन है वो भी अपनी इच्छाओं को इंटरनेट में ढूंढते है फिर उसे यथार्थ में पूरा करने के लिए साधन ढूंढते है। जो उम्र ईश्वर में ध्यान रमाने की हो। अपने हमउम्र दोस्तों के साथ समय गुजरने की हो उसमें अगर कोई इच्छा से वशीभूत होकर औरत ढूंढें तो इसे क्या ही कहें। 

बलात्कार अब राजनीति इसलिए है कि अब बलात्कारी सामाजिक दोषी नहीं प्रादेशिक निवासी है। जिस प्रदेश में बलात्कार हुआ वहां की सरकार उसे बचाएगी, दूसरी प्रादेशिक सरकारें अपने फायदे के लिए ये मुद्दा उछालेंगी। इसमें औरत की पीड़ा का मोल कहीं नजर आ रहा...नहीं ना।  और हो भी क्यों  ? ? औरत वो मामूली चीज़ है जिसे सिर्फ़ सामाजिक सरोकारों के लिए समाज में रहना जरूरी है। वरना समाज चल तो रहा है सिर्फ मर्दों की उपस्थिति से ...,ये सब लिखते बहुत दुःख होता है। पर लिख देती हूं जिससे मन की भड़ास थोड़ी तो हल्की होए। कोई समझे या ना समझे। कम से कम मैं अपने मन को समझा देती हूं कि इस विषय पर मेरे मन की पीड़ा मैनें व्यक्त कर दी..बाकियों की बाकी जाने। 

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