मासूमियत भरा गुनाह
मासूमियत भरा गुनाह : ••••••••••••••••••••••
★ एक सहेली ने दूसरी सहेली से पूछा.... तुम्हारे जन्मदिन की खुशी में तुम्हारे पति ने तुम्हें क्या तोहफा दिया ?
सहेली ने कहा - कुछ भी नहीं !
उसने सवाल करते हुए पूछा कि क्या ये अच्छी बात है ? क्या उसकी नज़र में तुम्हारी कोई कीमत नहीं ?
शब्दों का ये ज़हरीला बम गिरा कर वह सहेली दूसरी सहेली को उसकी फिक्र में छोड़कर चलती बनी।
थोड़ी देर बाद शाम के वक्त उसका पति घर आया और पत्नी का मुंह लटका हुआ पाया। फिर दोनों में झगड़ा हुआ।
एक दूसरे को लानतें भेजी। मारपीट हुई, और आखिर पति पत्नी में तलाक हो गया।
जानते हैं प्रॉब्लम की शुरुआत कहां से हुई ?
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उस फालतू के जुमले से जो उसका हालचाल जानने आई सहेली ने कहा था।
★ कैलाशजी ने अपने जिगरी दोस्त प्रकाश जी से पूछा:- तुम कहां काम करते हो?
प्रकाश जी - मालिक मनोहरलाल जी की दुकान में...
कैलाश जी - कितनी तनख्वाह देता है मालिक ?
प्रकाश जी -18 हजार
कैलाश जी-18000 रुपये बस, तुम्हारी जिंदगी कैसे कटती है इतने कम पैसों में ?
प्रकाश जी- (गहरी सांस खींचते हुए)- बस यार क्या ही बताऊं...!!
बातचीत खत्म हुई, कुछ दिनों बाद प्रकाश जीअपने काम से बेरूखा हो गया और तनख्वाह बढ़ाने की डिमांड कर दी, जिसे मालिक ने रद्द कर दिया। प्रकाशजी ने जॉब छोड़ दी और बेरोजगार हो गया। पहले उसके पास काम था ,अब काम भी नहीं रहा।
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★ एक साहब ने एक शख्स से कहा जो अपने बेटे से अलग रहता था। तुम्हारा बेटा तुमसे बहुत कम मिलने आता है। क्या उसे तुमसे प्यार नहीं?
बाप ने कहा, बेटा ज्यादा व्यस्त रहता है, उसका काम का शेड्यूल बहुत सख्त है। उसके बीवी बच्चे हैं, उसे बहुत कम वक्त मिलता है।
पहला आदमी बोला- वाह ! ...............यह क्या बात हुई, तुमने उसे पाला-पोसा उसकी हर ख्वाहिश पूरी की, अब उसको बुढ़ापे में व्यस्तता की वजह से मिलने का वक्त नहीं मिलता है। यह उसका ना मिलने का बहाना है।
इस बातचीत के बाद बाप के दिल में बेटे के प्रति शंका पैदा हो गई। बेटा जब भी मिलने आता तो बाप यही सोचता रहता कि उसके पास सबके लिए वक्त है सिवाय मेरे।
याद रखिए जुबान से निकले शब्द दूसरों पर बहुत गहरा प्रभाव डालते हैं।
हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बहुत से सवाल हमें बहुत मासूम लगते हैं और हम सामने वाला को अपना दिखाने के नाम पर पूछ बैठते हैं
जैसे-
तुमने यह क्यों नहीं खरीद पाए...??
तुम्हारे पास यह क्यों नहीं है...??
तुम इस शख्स के साथ पूरी जिंदगी कैसे रह सकती हो...??
तुम उसकी बातें कैसे सच मान सकते हो...??
तुम्हारी अच्छाई का फ़ायदा नहीं उठाया जा रहा, ये तुम्हें यकीन है...??
वगैरह वगैरह....
इस तरह के बेमतलबी फिजूल के सवाल नादानी में या बिना मकसद के हम पूछ बैठते हैं।
जबकि हम यह भूल जाते हैं कि हमारे ये सवाल सुनने वाले के दिल में शक़ और नफरत का बीज बो रहे हैं ।
आज के दौर में हमारे आस पास, समाज या घरों में जो तनाव बढ़ता जा रहा है, उनकी जड़ तक जाया जाए तो उसके पीछे अक्सर किसी और की कही छोटी छोटी बातों का हाथ होता है। जिन्हें दिल से लगा कर घाव बना दिया जाता है। बोलने वाले ये नहीं जानते कि नादानी में या जानबूझकर बोले जाने वाले जुमले किसी की ज़िंदगी को बरबाद कर सकते हैं।
इसलिए बातें वह करें जो मरहम का काम करें। अगर दूसरे के मन में कोई शंका या उहापहोह है भी तो उसे सुलझाने में मदद की जाए। क्योंकि सौहार्द से स्थिरता पैदा की जा सकती है। आलोचना से सिर्फ़ मानसिक हलचल बढ़ेगी।
इसलिए ध्यान रहे ऐसी हवा फैलाने वाले हम ना बनें..!🙏
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