रिश्तों में घुलता व्यावसायिकता का ज़हर ...😞

रिश्तों में घुलता व्यावसायिकता का जहर …………!

अगर किसी रिश्ते को निःस्वार्थ रूप में समझा जाता है तो वह है माता पिता का अपने बच्चों से रिश्ता। अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए एक अभिभावक किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। मगर आज बदलते समय में जिस मानवीय संवेदना को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है , वह है अपनेपन और प्यार का भाव। और इस नुकसान का असर माता पिता और बच्चों के रिश्ते पर भी पड़ा है। आज जिस घटना का जिक्र करूंगी उसे जान कर आप भी ऐसा ही सोचेंगे। एक भरा पूरा परिवार , माता पिता तीन बच्चे।  जिसमें नौ वर्ष की बड़ी बेटी थी , छह और चार वर्ष के दो बेटे थे। सब कुछ अच्छे से चल रहा था।  पर अचानक एक दिन बड़ी बेटी की कुछ जहरीला पदार्थ खाने से मौत हो गयी।  सब ने इसे एक दुर्घटना समझा और मामला रफा दफा हो गया।  सभी ने इस दुःख को ईश्वरीय विपदा समझ कर भूलने का प्रयास किया। इस हादसे को बामुश्किल ही लोग भूल पाये थे।  तभी एक दिन घर की महिला की विद्युत करेंट लगने से मौत हो गयी।  घर बिखर सा गया फिर भी महिला के परिवार जनों ने पति और बच्चों को सँभालने में सहारा दिया। परन्तु अब जो घटना घटी उसने पहले घटी सब घटनाओं का सत्य उजागर कर दिया। एक दिन अचानक दोनों छोटे बच्चे पास के ही निर्माणाधीन मकान के पानी के टाँके में मृत पाये गए। सबने इसे हादसा ही समझा पर महिला के परिवारजन के आग्रह पर पुलिस ने तफ्तीश प्रारम्भ की।  जो सत्य सामने आया वह अकल्पनीय था। 
                उस महिला के नाम उसके  पीहर वालों ने कुछ जमीन और नकद जमा करवा रखा था। साथ ही उस महिला के नाम एक बड़ी रकम की बीमा पालिसी भी थी जिस के उत्तराधिकारी उसके तीनों बच्चे ही थे। पिता ने पहले बड़ी बेटी को रास्ते से हटाया। फिर माँ को दुर्घटना के रूप में ख़त्म कर दिया।  और फिर बाकि बचे दोनों बच्चो को कीटनाशक पिला कर पानी के टाँके में फेक दिया। ये सब उसने परिवार में अकेला जीवित होने पर सारी मिलकियत अपने नाम करवाने के लिए किया। अब सवाल ये उठता है कि क्या किसी पिता का कलेजा इतना कठोर हो सकता है की मासूम से दिखने वाले अपने बच्चो को पहले कीटनाशक पिलाये और फिर अपने ही हाथों से उन्हें टाँके में फेक दे। कहते है मूल से सूद प्यारा होता है।  ये कहावत सही है  ,विवाह के बाद पति पत्नी का एक दूसरे के लिए प्यार बच्चों में बँट जाता है। इस से सम्बंधित एक वाकया आप को बताना चाहूंगी।  जब मुझे मेरी पहली संतान हुई तब मैंने अपने पति से ये सवाल पूछा की मै आपकी जिंदगी में पहले आयी थी और आप अपने बच्चो से ज्यादा प्यार करते हो।  तो उन्होंने बहुत ही मासूमियत से जवाब दिया कि बच्चे तो मेरा खून है तुम नहीं। अर्थात खून का रिश्ता ज्यादा  मजबूत होता है। ऐसी सोच होती है एक पिता की अपने बच्चों के लिए फिर कोई ऐसा कैसे कर सकता है ? ये सब दिन पर दिन बढ़ती व्यावसायिकता का नतीजा है जो आज रिश्तों पर भारी पड़  रहा है। …………        

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