मैं हार गई जग जीत गया .....😞
मैं हार गयी जग जीत गया ..........!
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एक राह चली फिर भटक गयी ,
न जाने कहाँ पर ठौर टीके।
हर बार नयी उम्मीद जगी,
फिर भी न मेरे पैर रुके।
सपनों की रेलम पेल में,
टुटा सुकून का ताना बाना।
जीवन को कभी समझा न सकी
न ही थमा गम का आना जाना।
हुआ गुनाह जो कुछ चाहा ,
बस यही हमारी गलती है।
क्यों जिक्र किया,रखी आशा,
टूटी आशा क्या फलती है ?
भागम भागी की पाबन्दी में ,
समय की डोर टूट गयी।
कुछ हाथ लगा न कुछ पाया ,
उम्मीद की दुनिया छूट गयी।
अब खड़े है रेगिस्तान में ,
जहाँ नहीं है पानी उम्मीद बन कर।
सिर्फ झाड़ कटीले चुभते हैं ,
सूखे जख्मों में नासूर बन कर।
मैं हार गयी जग जीत गया ,
अब आस की बिखरी किरचें है।
जो चुभ चुभ कर टीस देती हैं ,
और आह भर को मुहं भींचे हैं।
रो सकूँ तो बताओ रोऊँ कैसे ,
अंदाज नहीं , आवाज नहीं।
सब कुछ दफ़न कर बैठी हूँ ,
अब पंख नहीं परवाज नहीं।
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एक राह चली फिर भटक गयी ,
न जाने कहाँ पर ठौर टीके।
हर बार नयी उम्मीद जगी,
फिर भी न मेरे पैर रुके।
सपनों की रेलम पेल में,
टुटा सुकून का ताना बाना।
जीवन को कभी समझा न सकी
न ही थमा गम का आना जाना।
हुआ गुनाह जो कुछ चाहा ,
बस यही हमारी गलती है।
क्यों जिक्र किया,रखी आशा,
टूटी आशा क्या फलती है ?
भागम भागी की पाबन्दी में ,
समय की डोर टूट गयी।
कुछ हाथ लगा न कुछ पाया ,
उम्मीद की दुनिया छूट गयी।
अब खड़े है रेगिस्तान में ,
जहाँ नहीं है पानी उम्मीद बन कर।
सिर्फ झाड़ कटीले चुभते हैं ,
सूखे जख्मों में नासूर बन कर।
मैं हार गयी जग जीत गया ,
अब आस की बिखरी किरचें है।
जो चुभ चुभ कर टीस देती हैं ,
और आह भर को मुहं भींचे हैं।
रो सकूँ तो बताओ रोऊँ कैसे ,
अंदाज नहीं , आवाज नहीं।
सब कुछ दफ़न कर बैठी हूँ ,
अब पंख नहीं परवाज नहीं।
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