सर्वेश्वर दयाल रचित एक कविता जो मुझे बेहद पसंद है। ...........
(जो अपने अंदर की तमाम संभावनाओं को बस किसी के छोटे से साथ से प्रत्यक्ष बनने का हौसला दिखती है। )
तुम्हारे साथ रहके मुझे ऐसा महसूस हुआ है,
कि दिशाएं पास आ गयी हैं।
हर रास्ता छोटा हो गया है ,
दुनियां सिमट कर ,एक आँगन सी बन गयी है।
जो खचाखच भरा है ,
कही भी एकांत नहीं न बाहर न भीतर।
हर चीज का आकर घट गया है ,
पेड़ इतने छोटे हो गए हैं ,
कि मैं उनके शीश पर हाथ रख
आशीष दे सकता हूँ।
आकाश छाती से टकराता है ,
जब चाहूँ बादलों में मुहँ छुपा सकता हूँ।
तुम्हारे साथ रहकर अक्सर
मुझे ये महसूस हुआ है कि,
हर बात का एक मतलब होता है ,
यहाँ तक कि घाँस के हिलने का भी ,
हवा का खिड़की से आने का ,
और धूप का दीवार पर चढ़ कर चले जाने का।
तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे लगा कि,
हम असमर्थताओं से नहीं बल्कि ,
संभावनाओं से घीरे हैं
हर दीवार में द्वार बन सकता है ,
और उस द्वार से पूरा का पूरा
पहाड़ गुजर सकता है।
शक्ति अगर सीमित है तो ,
हर चीज अशक्त भी है।
भुजाएं छोटी हैं तो सागर भी सिमटा हुआ है ,
सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है।
जन्म और मृतु के बीच की भूमि ,
नियति की नहीं मेरी है।.. . . . . .
Comments
Post a Comment