कारण और बाध्यता के मोहजाल का परिणाम .............!
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आज के समाचार पत्र में एक हैडलाइन पढ़ी और उस समस्या से जुड़े सारे कारणों का लेखा-जोखा समझ में आ गया। समाचार था कि एक परिवार की माँ बेटियों ने एक साथ मिल कर फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली। वजह थी उनके परिवार के मुखिया आईएएस पदाधिकारी पुरुष का रिश्वतखोरी के मामले में गिरफ्तार होना। हम एक सामाजिक प्राणी हैं और हमें रोज ही न जाने कितने लोगों के संपर्क में आना और रहना पड़ता है। ये कारण पुरुष द्वारा गैरकानूनी ढंग से कमाई करने और आत्महत्या , दोनों के लिए वाजिब है। सब से पहले ये निष्कर्ष तलाशें कि पुरुष अपने कार्य में आमदनी से अधिक धन की लालसा में क्यों अनैतिक कार्य करने लगता है ? क्या इस के लिए हम , सभी परिवार के सदस्य जिम्मेदार नहीं होते ? क्या कभी हम ने अपनी जरूरतों और लालसाओं को सीमित करने या उन्हें थोड़े पर संतुष्ट करने का प्रयास किया हैं ? बाजार की हर नयी वस्तु के प्रति हमारा रुझान और समाज में उस वस्तु के जरिये अपना स्तर ऊँचा बनाए रखने का शौक परिवार के मुखिया पुरुष को और अधिक धन अर्जित करने के लिए बाध्य करता है। शायद ये उसका अपने परिवार के प्रति मोह होगा या उन्हें सारी सहूलियतें देने की ख्वाहिश। हम ही उस पुरुष को हर वो वस्तु दिलाने के लिए बाध्य करते हैं जो हो सकता कि उसकी पहुँच से बाहर हो। परिवार की रोजमर्रा की जरूरतें और उनका रहन सहन एक बड़ा कारण है किसी पुरुष द्वारा आमदनी से बाहर जा कर और अधिक धन कमाने के लिए कोशिश करना।
अब ये देखें कि यदि पुरुष ऐसा अनैतिक काम करते हुए पकड़ा गया तो ये परिवार के लिए शार्मिन्दगी का कारण बन जाता है। क्योकि पुरुष तो जेल में है पर परिवार के लोगों को उसी समाज के बीच उठना बैठना है जो तरह तरह की बातें बनाते है। क्या आत्महत्या करने वाले परिवार ने एक बार ये सोचा कि वह पुरुष जो आज उनकी जरूरतों को बनाए रखने के प्रयास का परिणाम भोग के जेल में बैठा है वह बाहर आने पर उसी समाज का सामना कैसे करेगा ? अब उसके सर दो- दो इल्जाम है पहला रिश्वतखोरी का दूसरा अपने परिवार को आत्महत्या के लिए बाध्य करने का। इन सब का मूल कारण है हमारा रहन सहन। हम ने आज अपने जीवन के ऐसे मानक तय कर लिए है जिन के नीचे जाना हमने शर्मिंदगी का कारण बना लिया है। सभी आधुनिक सुख सुविधा का होना हमारे जीवन का एक मात्र लक्ष्य बनता जा रहा है। अंतहीन और निरंतर बदलती टेकनोलोजी के परिणाम स्वरुप हमने जीवन उन तमाम चीजों के हवाले कर दिया है जो चिरस्थाई नहीं है। इसी वजह से हर नए के प्रति आकर्षण और पाने की चाह ने धन की उपयोगिता बढ़ा दी है।
इस लिए अगर हम चाहते हैं कि हमारे परिवार के पुरुष सुकून और संतुष्टि के साथ अपने कार्य को करें उसके लिए हम परिवार के लोग का कर्तव्य है कि अपनी अनैतिक जरूरतों और मांगों को दरकिनार करें। क्योंकि जब वजह ही नहीं होगी तब बाध्यता भी ख़त्म हो जाएगी।
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आज के समाचार पत्र में एक हैडलाइन पढ़ी और उस समस्या से जुड़े सारे कारणों का लेखा-जोखा समझ में आ गया। समाचार था कि एक परिवार की माँ बेटियों ने एक साथ मिल कर फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली। वजह थी उनके परिवार के मुखिया आईएएस पदाधिकारी पुरुष का रिश्वतखोरी के मामले में गिरफ्तार होना। हम एक सामाजिक प्राणी हैं और हमें रोज ही न जाने कितने लोगों के संपर्क में आना और रहना पड़ता है। ये कारण पुरुष द्वारा गैरकानूनी ढंग से कमाई करने और आत्महत्या , दोनों के लिए वाजिब है। सब से पहले ये निष्कर्ष तलाशें कि पुरुष अपने कार्य में आमदनी से अधिक धन की लालसा में क्यों अनैतिक कार्य करने लगता है ? क्या इस के लिए हम , सभी परिवार के सदस्य जिम्मेदार नहीं होते ? क्या कभी हम ने अपनी जरूरतों और लालसाओं को सीमित करने या उन्हें थोड़े पर संतुष्ट करने का प्रयास किया हैं ? बाजार की हर नयी वस्तु के प्रति हमारा रुझान और समाज में उस वस्तु के जरिये अपना स्तर ऊँचा बनाए रखने का शौक परिवार के मुखिया पुरुष को और अधिक धन अर्जित करने के लिए बाध्य करता है। शायद ये उसका अपने परिवार के प्रति मोह होगा या उन्हें सारी सहूलियतें देने की ख्वाहिश। हम ही उस पुरुष को हर वो वस्तु दिलाने के लिए बाध्य करते हैं जो हो सकता कि उसकी पहुँच से बाहर हो। परिवार की रोजमर्रा की जरूरतें और उनका रहन सहन एक बड़ा कारण है किसी पुरुष द्वारा आमदनी से बाहर जा कर और अधिक धन कमाने के लिए कोशिश करना।
अब ये देखें कि यदि पुरुष ऐसा अनैतिक काम करते हुए पकड़ा गया तो ये परिवार के लिए शार्मिन्दगी का कारण बन जाता है। क्योकि पुरुष तो जेल में है पर परिवार के लोगों को उसी समाज के बीच उठना बैठना है जो तरह तरह की बातें बनाते है। क्या आत्महत्या करने वाले परिवार ने एक बार ये सोचा कि वह पुरुष जो आज उनकी जरूरतों को बनाए रखने के प्रयास का परिणाम भोग के जेल में बैठा है वह बाहर आने पर उसी समाज का सामना कैसे करेगा ? अब उसके सर दो- दो इल्जाम है पहला रिश्वतखोरी का दूसरा अपने परिवार को आत्महत्या के लिए बाध्य करने का। इन सब का मूल कारण है हमारा रहन सहन। हम ने आज अपने जीवन के ऐसे मानक तय कर लिए है जिन के नीचे जाना हमने शर्मिंदगी का कारण बना लिया है। सभी आधुनिक सुख सुविधा का होना हमारे जीवन का एक मात्र लक्ष्य बनता जा रहा है। अंतहीन और निरंतर बदलती टेकनोलोजी के परिणाम स्वरुप हमने जीवन उन तमाम चीजों के हवाले कर दिया है जो चिरस्थाई नहीं है। इसी वजह से हर नए के प्रति आकर्षण और पाने की चाह ने धन की उपयोगिता बढ़ा दी है।
इस लिए अगर हम चाहते हैं कि हमारे परिवार के पुरुष सुकून और संतुष्टि के साथ अपने कार्य को करें उसके लिए हम परिवार के लोग का कर्तव्य है कि अपनी अनैतिक जरूरतों और मांगों को दरकिनार करें। क्योंकि जब वजह ही नहीं होगी तब बाध्यता भी ख़त्म हो जाएगी।
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