दिशा और दशा बदलने का साहस देने का निर्णय .....!

हालाँकि इसमें दो राय नहीं कि बहुत से अपराध सिर्फ इस लिए अपनी सजा के अंजाम तक नहीं पहुँच पाते क्योंकि कानून कई स्तर पर अनेकों साक्ष्य और नियमों का हवाला देते हुए परिस्थितियों का रूप ही बदल देता है। शायद यही कारण है कि न्याय की आस कई बार कोर्ट में ही दम तोड़ देती है। पर इस बार एक नया संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक नया फैसला लिया। यूँ तो गर्भपात की इजाज़त सिर्फ 20 हफ्ते तक ही कानूनी रूप से मान्य है। परंतु मुम्बई की एक बलात्कार पीड़िता ने इस नियम को चुनौती दी। उसकी मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार बलात्कार के परिणाम स्वरुप उसके गर्भ में पल रहा बच्चा शारीरिक रूप से विकृत है जिसका सर पूरी तरह विकसित नहीं हो पाया है जो की भ्रूण के विकास होने पर सही रूप से सामने आ पाया। अब वह युवती उस बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती जो की जीवन भर अपाहिज की तरह जियेगा या ये भी हो सकता की जन्म लेने के बाद जीवित ही न रहे। ऐसे में उसे पुरे नौ माह कोख में रखने का कोई लाभ नहीं है। उसने कोर्ट में एक अर्जी लगाई और कोर्ट ने उसकी तमाम मेडिकल जांचों को मद्देनजर रखते हुए उसे ये इजाजत दी की वह 26 हफ्ते के भ्रूण का गर्भपात करवा सकती है। ये ऐतिहासिक फैसला उस युवती के लिए वरदान है। क्योंकि एक तो वह पहले से ही बलात्कार का दंश झेल रही है उस पर विकृत औलाद के साथ जीवन काटना उसके लिए श्राप जैसा हो जाता।
युवती का विवाह पक्का हो गया था और उसी के मंगेतर ने उसके साथ बलात्कार कर के उसे झांसा दे कर छोड़ दिया। अब वह विवाह से भी मुकर गया और उसने उस बच्चे को भी अपना मानने से इंकार कर दिया। ऐसे में उस युवती का उस विकृत बच्चे से मुक्त होने का निर्णय सही है। और कोर्ट ने उस का साथ दे कर उसके जीवन के एक नए अध्याय की शुरुआत कर दी है। जिसमें वह पिछली सभी बातों को भूल कर एक नया जीवन शुरू करेगी। जरूरत है ऐसे ही निर्णयों की जो जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल कर एक नया सफर की शुरुआत कर सकें।

हालाँकि इसमें दो राय नहीं कि बहुत से अपराध सिर्फ इस लिए अपनी सजा के अंजाम तक नहीं पहुँच पाते क्योंकि कानून कई स्तर पर अनेकों साक्ष्य और नियमों का हवाला देते हुए परिस्थितियों का रूप ही बदल देता है। शायद यही कारण है कि न्याय की आस कई बार कोर्ट में ही दम तोड़ देती है। पर इस बार एक नया संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक नया फैसला लिया। यूँ तो गर्भपात की इजाज़त सिर्फ 20 हफ्ते तक ही कानूनी रूप से मान्य है। परंतु मुम्बई की एक बलात्कार पीड़िता ने इस नियम को चुनौती दी। उसकी मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार बलात्कार के परिणाम स्वरुप उसके गर्भ में पल रहा बच्चा शारीरिक रूप से विकृत है जिसका सर पूरी तरह विकसित नहीं हो पाया है जो की भ्रूण के विकास होने पर सही रूप से सामने आ पाया। अब वह युवती उस बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती जो की जीवन भर अपाहिज की तरह जियेगा या ये भी हो सकता की जन्म लेने के बाद जीवित ही न रहे। ऐसे में उसे पुरे नौ माह कोख में रखने का कोई लाभ नहीं है। उसने कोर्ट में एक अर्जी लगाई और कोर्ट ने उसकी तमाम मेडिकल जांचों को मद्देनजर रखते हुए उसे ये इजाजत दी की वह 26 हफ्ते के भ्रूण का गर्भपात करवा सकती है। ये ऐतिहासिक फैसला उस युवती के लिए वरदान है। क्योंकि एक तो वह पहले से ही बलात्कार का दंश झेल रही है उस पर विकृत औलाद के साथ जीवन काटना उसके लिए श्राप जैसा हो जाता।
युवती का विवाह पक्का हो गया था और उसी के मंगेतर ने उसके साथ बलात्कार कर के उसे झांसा दे कर छोड़ दिया। अब वह विवाह से भी मुकर गया और उसने उस बच्चे को भी अपना मानने से इंकार कर दिया। ऐसे में उस युवती का उस विकृत बच्चे से मुक्त होने का निर्णय सही है। और कोर्ट ने उस का साथ दे कर उसके जीवन के एक नए अध्याय की शुरुआत कर दी है। जिसमें वह पिछली सभी बातों को भूल कर एक नया जीवन शुरू करेगी। जरूरत है ऐसे ही निर्णयों की जो जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल कर एक नया सफर की शुरुआत कर सकें।
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