अज्ञानता नहीं बेवकूफी का परिणाम...... !
राजस्थान के एक जिले हनुमानगढ़ की एक घटना ...... एक मजदूर माँ अपनी दो बच्चियों एक 5 वर्ष की , दूसरी 7 वर्ष की को बाहर खेलता छोड़ कर घर के काम निपटा रही थी। पड़ोस का ही एक लड़का रोजाना ही उन बच्चियों से खेलने व बातें करने आता रहता था। उस दिन भी आया पर दोनों बच्चियों को फुसला कर अपने घर ले गया। और फिर वही हुआ जो होता आया है। हैरान करने वाली बात ये है कि उस युवक ने बारी-बारी दोनों बच्चियों के साथ बलात्कार किया। मैं एक विवाहित स्त्री हैं और पुरुष के अंदर उत्पन्न होने वाली उत्तेजना को पहचानती हूँ .ये समझती हूँ कि एक बार पूर्ण रूप से उत्तेजित होने के बाद पुरुष को अगली बार के लिए कुछ समय चाहिए होता है। उस युवक ने एक ही साथ दोनों बच्चियों को ख़राब कैसे किया ? और फिर एक बच्ची के साथ ये सब करते समय क्या दूसरी बच्ची ने विरोध या अनजान डर नहीं दिखाया होगा। कुछ चीजें समझ से बाहर होती हैं ये तो मुझे भी समझ नहीं आया कि एक साथ उसने दो दो बच्चियों का बलात्कार कैसे कर लिया। और फिर इसे उसकी बेख़ौफ़ी ही कहेंगे कि उसे बिलकुल डर नहीं लगा।
अमूमन मजदूर वर्ग की औरतें अपने बच्चों को खुले में खेलने के लिए छोड़ कर काम करती रहती हैं। हालाँकि इस बात का डर उनके मन में भी जरूर आता होगा कि कही कोई बच्ची का साथ कुछ गलत न कर दे। पर काम की जरूरत और गरीबी से जूझते हालातों में वह डर को अनदेखा करना सीख जाती हैं। इस में भी मैं एक सत्य कहना चाहूंगी कि इन मजदूरों की भी ये मानसिकता कि जितने हाथ होंगे उतना काम और पैसा आएगा यह गलत होती है। परिवार छोटा होगा तो खर्चे भी कम होंगे। कोई भी बच्चा वयस्क होने पर ही कमाने निकलेगा। तब तक तो माँ बाप को ही उसको खिलाना पिलाना है। ऐसे में बच्चों की भीड़ बढ़ाने से क्या फ़ायदा। यह भी नहीं की परिवार नियोजन के तरीके वह अपना नहीं सकते , यह सब आजकल सरकार द्वारा मुफ्त मुहैया कराया जाता हैं। पर बच्चों की भीड़ बढ़ा कर जिसमें खासकर बेटियां को पैदा करके इस तरह खुले छोड़ देना बिलकुल गलत है। भले ही ये पढ़े लिखे नहीं होते हैं।पर परिवार चलाने के लिए कितने धन की आवश्यकता पड़ेगी ये तो अच्छी तरह समझते हैं। और ये भी जानते होंगे की एक बच्चा अपने साथ कितने खर्च ले कर आता है। अतः ये सोचने और समझने की बात है। जो न ये समझेंगे न ही स्थिति सुधरेगी।
राजस्थान के एक जिले हनुमानगढ़ की एक घटना ...... एक मजदूर माँ अपनी दो बच्चियों एक 5 वर्ष की , दूसरी 7 वर्ष की को बाहर खेलता छोड़ कर घर के काम निपटा रही थी। पड़ोस का ही एक लड़का रोजाना ही उन बच्चियों से खेलने व बातें करने आता रहता था। उस दिन भी आया पर दोनों बच्चियों को फुसला कर अपने घर ले गया। और फिर वही हुआ जो होता आया है। हैरान करने वाली बात ये है कि उस युवक ने बारी-बारी दोनों बच्चियों के साथ बलात्कार किया। मैं एक विवाहित स्त्री हैं और पुरुष के अंदर उत्पन्न होने वाली उत्तेजना को पहचानती हूँ .ये समझती हूँ कि एक बार पूर्ण रूप से उत्तेजित होने के बाद पुरुष को अगली बार के लिए कुछ समय चाहिए होता है। उस युवक ने एक ही साथ दोनों बच्चियों को ख़राब कैसे किया ? और फिर एक बच्ची के साथ ये सब करते समय क्या दूसरी बच्ची ने विरोध या अनजान डर नहीं दिखाया होगा। कुछ चीजें समझ से बाहर होती हैं ये तो मुझे भी समझ नहीं आया कि एक साथ उसने दो दो बच्चियों का बलात्कार कैसे कर लिया। और फिर इसे उसकी बेख़ौफ़ी ही कहेंगे कि उसे बिलकुल डर नहीं लगा।
अमूमन मजदूर वर्ग की औरतें अपने बच्चों को खुले में खेलने के लिए छोड़ कर काम करती रहती हैं। हालाँकि इस बात का डर उनके मन में भी जरूर आता होगा कि कही कोई बच्ची का साथ कुछ गलत न कर दे। पर काम की जरूरत और गरीबी से जूझते हालातों में वह डर को अनदेखा करना सीख जाती हैं। इस में भी मैं एक सत्य कहना चाहूंगी कि इन मजदूरों की भी ये मानसिकता कि जितने हाथ होंगे उतना काम और पैसा आएगा यह गलत होती है। परिवार छोटा होगा तो खर्चे भी कम होंगे। कोई भी बच्चा वयस्क होने पर ही कमाने निकलेगा। तब तक तो माँ बाप को ही उसको खिलाना पिलाना है। ऐसे में बच्चों की भीड़ बढ़ाने से क्या फ़ायदा। यह भी नहीं की परिवार नियोजन के तरीके वह अपना नहीं सकते , यह सब आजकल सरकार द्वारा मुफ्त मुहैया कराया जाता हैं। पर बच्चों की भीड़ बढ़ा कर जिसमें खासकर बेटियां को पैदा करके इस तरह खुले छोड़ देना बिलकुल गलत है। भले ही ये पढ़े लिखे नहीं होते हैं।पर परिवार चलाने के लिए कितने धन की आवश्यकता पड़ेगी ये तो अच्छी तरह समझते हैं। और ये भी जानते होंगे की एक बच्चा अपने साथ कितने खर्च ले कर आता है। अतः ये सोचने और समझने की बात है। जो न ये समझेंगे न ही स्थिति सुधरेगी।
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