छूत की बीमारी बन जाए ..... जय हो !
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काश ईमानदारी एक छूत की तरह फैलने वाली बीमारी की तरह होती। जो एक को अगर लग जाती तो उसके साथ उठने बैठने वाले हर सदस्य को भी हो जाती। पर ऐसा नहीं है। ये एक ऐसी आदत है जिससे आज के कर्मचारी अपनाना नहीं पसंद करते हैं। उन्हें ईमानदारी अपने जीवन को जीने के लिए संपूर्ण सुविधाएँ मुहैय्या नहीं करा पाती। इसी लिये वह इस से दूर ही रहना पसंद करते हैं। भारतीय इस मामले में सबसे अव्वल हैं। उन्हें अपनी उन्नयन जीवनशैली से इतना प्यार है कि वह उसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं।  यह रवैया सरकारी महकमों में काफी पसरा पड़ा है। आज भी अतिरिक्त धनोपार्जन के लिए कर्मचारी कोई भी हथकंडा अपनाने को तैयार रहते हैं। हम नहीं सुधरेंगे वाले फंडे को ले कर चलने वाले ये भारतीय इसी तरह देश की अर्थव्यवस्था की बैंड बजाते रहेंगे। 
                                                 चीन ने इस सन्दर्भ में एक अच्छा कदम उठाया है। काश भारतीयों को भी ऐसी ही सुध आ जाती। चीन में अब कोई भी यदि सरकारी बैंक या संस्थाओं से क़र्ज़ लिया हो और उसे चुकता  न कर रहा हो ऐसे लोगो के नाम ब्लैक लिस्ट में डाल दिए गए हैं। कोर्ट द्वारा उनकी पर्सनल आईडी को ब्लॉक कर दिया गया है।  जिसके आधार पर वह अब हवाईजहाज में , हाइ स्पीड रेल में सफर नहीं कर पाएंगे।  उन्हें होटलों में रुकने , किराये पर कमरे लेने पर भी रोक लगा दी गयी है। शहर में जगह जगह उनके फोटो के साथ पोस्टर लगा दिया जायेगा जिससे उनके बच्चों को अच्छे और नामी स्कूलों में दाखिल नहीं मिल पायेगा। यहाँ तक कि एक युवक की शादी भी कन्या पक्ष की तरफ से रोक दी गयी क्योंकि युवक के पिता का नाम ब्लैक लिस्ट में था। एक व्यवसायी ने अपने पार्टनर से अपनी डील ख़ारिज कर दी क्योंकि उसे ब्लैक लिस्टेड होने के कारण हवाईजहाज में बैठने नहीं दिया। ये कुछ कठोर कदम उठाये गए ताकि देश की अर्थव्यवस्था को संभाल जा सके। 
                                 हमारे हिंदुस्तान में आज भी बड़े बड़े उद्योगपतियों को बैंक भारी मात्रा में क़र्ज़ दे देती है और कई नाम आज भी समाचारों में है जो क़र्ज़  नहीं चुका पाएं हैं। जब तक इस तरह के कठोर और अविश्वसनीय कदम नहीं उठाये जाएंगे इन सूदखोरों की नीयत नहीं बदलने वाली।  कहते हैं न कि जितनी चादर हो उतना ही पैर पसारना चाहिए। पर ये लोग अपनी क्षमता से ज्यादा क़र्ज़ ले कर उसे चुका न पाने की स्थिति में खुद को दिवालिया भी घोषित करने को तैयार रहते हैं। किसी बड़े सुधार के लिए किसी बड़े बदलाव का नियम लाना ही होगा। यदि एक आम नागरिक अपना क़र्ज़ न चूका पाए तो बैंक उस के घर पहुँच कर कुर्की के आदेश दे देती हैं परंतु यही यदि एक बड़ा उद्द्यमी है तो उससे याचना कर के क़र्ज़ माँगा जाता है यह रसूख का अंतर है। चीन के इस कदम से रसूख के अंतर का समापन हुआ है और एक डर लोगों के मन में आया जो उनके जीवन को प्रभावित कर रहा है। जय हो........ 
                                                    

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