विश्वास और संयत व्यव्हार की आवश्यकता....... !
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चलिए आज फिर से कुछ व्यावहारिक मुद्दों की चर्चा करते हैं। जो हम सब को पता है पर उन्हें जीवन में आजमाने में हम हमेशा कतराते रहते हैं। हम जिन भी रिश्तों में बंधें है उनसे सम्बन्ध निभाते समय कुछ न कुछ ऊंच नीच होती रहती है। कभी हमसे-कभी उनसे , यह एक सामान्य सी बात है। इन्हें हावी होने देना रिश्तों के लिए अच्छा संकेत नहीं होता। लेकिन फिर भी हम उस बात को इस कदर सोचते हुए गहरी कर देते हैं कि खाई सी बनने लगती है।यह तो सभी जानते और मानते होंगे कि जीवन का लेखा जोखा पहले से ही निर्धारित होता है। किसी को नहीं पता अगले पल क्या होने। हम सब के जीवन में जब भी कोई दुःख या विपदा आयी है। अक्सर यह बात मन में आती ही होगी कि जरूर ये हमारे पूर्व जन्म के कर्मों का फल है। हो सकता है की ये सही हो। पर क्या आप ने इस बात की गंभीरता को समझा ? हम जन्म के साथ ही अपना भाग्य ले कर पैदा होते है। जन्मते ही तो बच्चा किसी का अच्छा बुरा नहीं करता पर उसी समय उसके भाग्य का निर्णय पूर्व जन्मों के कर्मों के आधार पर लिया जाता है।
हमारे जीवन के सभी अच्छे बुरे पल हमारे लिए पहले से ही निर्धारित किये जा चुके होते है और साथ ही ये भी कि उन पलों में कौन व्यक्ति आप के लिए माध्यम की भूमिका निभाएगा। यदि आप के साथ अच्छा होता है तो आप उस व्यक्ति को सराहते हैं पर यदि कुछ ख़राब हो गया तब वह आप की कोप दृष्टि का भागी बनता है। यह जानते हुए भी कि यह हमारे भाग्य का एक हिस्सा है हम उस व्यक्ति को दोषी मान कर उससे सम्बन्ध ख़त्म करने लगते हैं। ये भी इसी सत्य का एक हिस्सा है कि भाग्य के अनुसार यदि कुछ बुरा होने के पश्चात् थोड़ी सी परिपक्वता दिखाते हुए यह स्वीकार कर लिया जाए कि यह होना तय था तो शायद किसी दूसरे को इस के लिए दोषी नहीं ठहरा सकेंगे और एक अच्छा खास रिश्ता ख़त्म होने से बच सकेगा। यह हमारे मन की दृढ़ता और सिद्धि के ऊपर निर्भर करता है। जो बुरा आवश्म्भावी हो उसे नहीं टाला जा सकता पर जो बुरा हमारे व्यव्हार के जरिये होने वाला है वह टाला जा सकता है। आगे आने वाली सभी परिस्थितियां इस बात पर निर्भर हैं कि प्रतिक्रिया कैसे दी जा रही हैं। इस लिए हमेशा अपने व्यव्हार को इस प्रकार संयत रखें की जो भी अप्रिय हुआ वह हमारे संबंधों को प्रभावित न कर सके।
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चलिए आज फिर से कुछ व्यावहारिक मुद्दों की चर्चा करते हैं। जो हम सब को पता है पर उन्हें जीवन में आजमाने में हम हमेशा कतराते रहते हैं। हम जिन भी रिश्तों में बंधें है उनसे सम्बन्ध निभाते समय कुछ न कुछ ऊंच नीच होती रहती है। कभी हमसे-कभी उनसे , यह एक सामान्य सी बात है। इन्हें हावी होने देना रिश्तों के लिए अच्छा संकेत नहीं होता। लेकिन फिर भी हम उस बात को इस कदर सोचते हुए गहरी कर देते हैं कि खाई सी बनने लगती है।यह तो सभी जानते और मानते होंगे कि जीवन का लेखा जोखा पहले से ही निर्धारित होता है। किसी को नहीं पता अगले पल क्या होने। हम सब के जीवन में जब भी कोई दुःख या विपदा आयी है। अक्सर यह बात मन में आती ही होगी कि जरूर ये हमारे पूर्व जन्म के कर्मों का फल है। हो सकता है की ये सही हो। पर क्या आप ने इस बात की गंभीरता को समझा ? हम जन्म के साथ ही अपना भाग्य ले कर पैदा होते है। जन्मते ही तो बच्चा किसी का अच्छा बुरा नहीं करता पर उसी समय उसके भाग्य का निर्णय पूर्व जन्मों के कर्मों के आधार पर लिया जाता है।
हमारे जीवन के सभी अच्छे बुरे पल हमारे लिए पहले से ही निर्धारित किये जा चुके होते है और साथ ही ये भी कि उन पलों में कौन व्यक्ति आप के लिए माध्यम की भूमिका निभाएगा। यदि आप के साथ अच्छा होता है तो आप उस व्यक्ति को सराहते हैं पर यदि कुछ ख़राब हो गया तब वह आप की कोप दृष्टि का भागी बनता है। यह जानते हुए भी कि यह हमारे भाग्य का एक हिस्सा है हम उस व्यक्ति को दोषी मान कर उससे सम्बन्ध ख़त्म करने लगते हैं। ये भी इसी सत्य का एक हिस्सा है कि भाग्य के अनुसार यदि कुछ बुरा होने के पश्चात् थोड़ी सी परिपक्वता दिखाते हुए यह स्वीकार कर लिया जाए कि यह होना तय था तो शायद किसी दूसरे को इस के लिए दोषी नहीं ठहरा सकेंगे और एक अच्छा खास रिश्ता ख़त्म होने से बच सकेगा। यह हमारे मन की दृढ़ता और सिद्धि के ऊपर निर्भर करता है। जो बुरा आवश्म्भावी हो उसे नहीं टाला जा सकता पर जो बुरा हमारे व्यव्हार के जरिये होने वाला है वह टाला जा सकता है। आगे आने वाली सभी परिस्थितियां इस बात पर निर्भर हैं कि प्रतिक्रिया कैसे दी जा रही हैं। इस लिए हमेशा अपने व्यव्हार को इस प्रकार संयत रखें की जो भी अप्रिय हुआ वह हमारे संबंधों को प्रभावित न कर सके।
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