साँसों का हिसाब किताब

 साँसों का हिसाब- किताब !!      ••••••••••••••••••••••••••

अच्छा.........अभी तुम जिंदा हो ??

 अगर जिंदा हो तो साँसे भी ले ही रहे होगे... हर मिनट लगभग 15 बार और दिन भर में तकरीबन साढ़े 21 हज़ार बार....फ़िर भी क्या हिसाब रखा कि हफ्फिंग और पफ्फिंग में कितनी साँसे जाया हुई .....!! नहीं रखा होगा क्योंकि ये ध्यान रखा ही कहाँ कि ये आती जाती हुई साँसे , निर्माण और विध्वंस किसमें सहयोग दे रही ? ?  हर साँस का हिसाब होता है। वह हिसाब भविष्य की नीवं बनाता या बिगाड़ता है।

कोरोना काल से पहले भी सभी साँसों के जरिये ऑक्सिजन इन्हेल कर ही रहे थे। लेकिन अब समझ आया कि आपात स्थिति में ऑक्सिजन की कमी जो वातावरण पूरी नहीं कर पा रहा था उसके लिए कितना गिड़गिड़ाना पड़ा। तड़पना पड़ा और ना मिली तो जान गँवाना पड़ा। अब तक जितने दिन जिये हो हिसाब लगाओ कि कितनी साँसे ले चुके हो ?? प्रकृति का भले ही एहसान मत मानो पर गिनती करके ये आंकलन जरूर करो कि ली गई साँसों में कितनी प्रोडक्टिव थी कितनी अनप्रोडक्टिव... क्योंकि जब ये हिसाब रखना शुरू करोगे तभी सही मायनों में तुम सही तरीके से जीना शुरू करोगे। वरना साँसे लेते रहना कोई बड़ी बात नहीं। सभी ले रहे तुम भी लेते रहो।                                            प्रोडक्टिविटी कोई आसमान की उड़ती चिरैया नहीं जिसे चाह कर भी पकड़ नहीं पा रहे। अब सवाल ये भी है कि साँसों की प्रोडक्टिविटी क्या होती है तो जिस तरह जिंदगी का एक एक पल गुजर रहा उसी तरह लिखवा कर लाई गई साँसों का कोटा भी खत्म हो रहा। कभी शांति से बैठो तो सोचना की कौन से माहौल में ली गई साँसें तुम्हें या तुम्हारे किसी अपने को कुछ अच्छा दे कर गईं। हर साँस पर उसका return लिखा होता है। जानना और समझना है तो अपना जन्म से आज तक का इतिहास खंगाल लो। प्रोडक्टिविटी का आंकलन हो जाएगा।

★★★★★★★★★★★★★★★★★








Comments