एक गरीब किसान

 एक गरीब किसान : 🌾🌿      •••••••••••••••••••••••••••••

कभी सोचा है कि ज़्यादातर कहानियों की शुरुआत इस तरह से क्यों होती है कि...

"रामराज्य में एक गरीब किसान रहता था"

अब सोचें ये की जो अन्नदाता हम सब का पेट भर रहा वो गरीब क्यों और बदहाल क्यों ? ? उसकी छवि ऐसी क्यों गढ़ी गई कि वह थक हार के पेड़ की छांव में घर से लाई प्याज़ और रोटी खा कर पुनः खेत में काम पर लौटेगा और अथक परिश्रम के बाद भी स्थिति से बद्तर रहेगा।

इसी विचार से जुड़ा एक किस्सा याद आ रहा, प्रस्तुत है :-

एक किसान पेड़ की छांव में गमछा बिछा कर सो रहा था। बगल की सड़क से गुजरते कुछ सेठ व्यापारियों को उस ज़मीन के बड़े से क्षेत्र में संभावनाएं दिखी। और मन में लालच भी पैदा हुआ। वह किसान के पास गए और वार्तालाप किया ......

व्यापारी : कृषक भईया , कार्य करते हुए थक गए हो क्या जो नींद लेने के लिए पेड़ की ठंडी छाँव में आ गए ....आपसे कुछ पूछना है कि क्या ये आस पास दिख रही ज़मीन आपकी है ? ?

किसान : जी बंधु ,यहां दिख रही सभी जमीन मेरी ही है। 

व्यापारी : क्या आप अकेले इतनी जमीन पर खेती किसानी करते हो ? ?

किसान : जी महोदय मैं अपनी सारी जमीन खुद ही संभालता हूँ और स्वयं ही खेती करता हूँ। 

व्यापारी : तब तो आपको बहुत कष्टों का सामना करना पड़ता होगा । 

किसान : जी नहीं महोदय मैं अपने परिश्रम और उसकी उपज से संतुष्ट हूँ ।

व्यापारी : बन्धु चाहे आप कुछ भी कहे हम आपकी तकलीफ़ देख और समझ रहे। इसी वास्ते हम इस जमीन का कुछ भाग खरीदना चाहते हैं। जिससे आपका बोझ भी हल्का हो और अर्जित धन से आपको आराम भी मिले।

किसान : क्षमा करें महोदयगण , मैं जमीन का सौदा नहीं करना चाहता। 

व्यापारी : चलिए आपको थोड़ा और आकर्षण दिखाते हैं । आप जमीन बेच दोगे तो उस धन से एक बड़ा घर और सुख सुविधाएं जुटा सकोगे। फ़िर ठंडी हवा में आप सुकून से आराम करते हुए चैन की नींद लेना। 

किसान : महोदय , क्या आप ने महसूस किया कि सारे वार्तालाप के बाद आप पुनः सुकून भरी चैन की नींद पर वापस आ गए....वो तो मैं अभी भी प्रकृति की गोद में पेड़ की ठंडी छाँव में ले ही रहा हूँ। अतः मुझे क्षमा करके प्रस्थान करें । 

इस घटना से ये साबित होता है कि किसान को दुःखी , बदहाल और दयनीय नहीं मानना चाहिए। उसे भी अपने परिश्रम और उसकी उपज के धन से अपनी स्थिति वर्तमान सामाजिक परिदृश्य के अनुसार अपना स्तर ऊंचा करने का हक़ है जो वह करता है। वो बदहाल नहीं खुश रहता है क्योंकि जमीन उसकी सम्पदा है। जमीन से जुड़े किसान को मिट्टी समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। 

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