स्त्री की पीड़ा और मन की चाह..............!
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हाहाकार चहुँ ओर है , मचा हुआ है क्रंदन ।
अस्मत के मोल का , आज हो रहा है हनन। # 1
राम और रावण के मध्य , सदा रही है अनबन ।
कौन सुने पीर सिया की ,उसका घुटन भरा रुदन। # 2
चपल वाचाल उपद्रवी , छितराये हुए हैं सघन ।
लोलुपता से कुचल रहे जो, हर सीते का शुद्ध स्पंदन। # 3
कैसे पहचाने भीड़ में , कौन राम है कौन रावन।
दूषित कर रहें जो निरंतर, कंचन समान बदन। # 4
स्वछंदता हावी सब पर है ,अनाधीनता का है चलन।
अति लोभ बन गया , हर एक जीवन का साधन। # 5
तुच्छ अवशेष सरीखे हैं अब, सुन सीते तेरे अँसुवन।
रुधिर छलकाते भीग रहे, तेरे मृगनयनी से नयन। # 6
कौन देगा आज सीते तुझे, निर्भयत्व रखने का वचन।
राम और रावन दोनों ने ही ,बलि माँगी तेरा तन -मन। # 7
सक्षम बन,मन के संत्रास को कर,विजयदशमी पर दहन।
प्रज्ज्वलित कर सामर्थ्य का तेज, हो हीनता का समापन। # 8
अब स्वयं ही तू मध्यस्थ बन, करदे हर मति का शोधन।
दाहक बन कर फूँक दे तू , हर अज्ञानी रावन का अहम्। # 9
ज्वाला सी प्रचंड वेग बन, कर नरपशुओं का उच्छ्वसन।
जयजयकार गूंज उठे तेरी,प्रदीप्त आभा से चमके गगन। # 10
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हाहाकार चहुँ ओर है , मचा हुआ है क्रंदन ।
अस्मत के मोल का , आज हो रहा है हनन। # 1
राम और रावण के मध्य , सदा रही है अनबन ।
कौन सुने पीर सिया की ,उसका घुटन भरा रुदन। # 2
चपल वाचाल उपद्रवी , छितराये हुए हैं सघन ।
लोलुपता से कुचल रहे जो, हर सीते का शुद्ध स्पंदन। # 3
कैसे पहचाने भीड़ में , कौन राम है कौन रावन।
दूषित कर रहें जो निरंतर, कंचन समान बदन। # 4
स्वछंदता हावी सब पर है ,अनाधीनता का है चलन।
अति लोभ बन गया , हर एक जीवन का साधन। # 5
तुच्छ अवशेष सरीखे हैं अब, सुन सीते तेरे अँसुवन।
रुधिर छलकाते भीग रहे, तेरे मृगनयनी से नयन। # 6
कौन देगा आज सीते तुझे, निर्भयत्व रखने का वचन।
राम और रावन दोनों ने ही ,बलि माँगी तेरा तन -मन। # 7
सक्षम बन,मन के संत्रास को कर,विजयदशमी पर दहन।
प्रज्ज्वलित कर सामर्थ्य का तेज, हो हीनता का समापन। # 8
अब स्वयं ही तू मध्यस्थ बन, करदे हर मति का शोधन।
दाहक बन कर फूँक दे तू , हर अज्ञानी रावन का अहम्। # 9
ज्वाला सी प्रचंड वेग बन, कर नरपशुओं का उच्छ्वसन।
जयजयकार गूंज उठे तेरी,प्रदीप्त आभा से चमके गगन। # 10
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