हैवानियत......... !
**********************
आज के समाचार पत्र में एक खबर हैडलाइन के रूप में छपी और दुःख जताने के लिए मैंने एक बार फिर अपने लेख का सहारा लिया। दिल्ली के गुडगाँव में एक विद्यालय रेयान इंटरनेशनल में एक दूसरी कक्षा के बच्चे की गला रेत कर हत्या कर दी गयी। कारण वही , कुकर्म का प्रयास। छह वर्ष का मासूम सा बच्चा सुबह 7. 55 पर अपने पिता द्वारा स्कूल छोड़ा गया और करीब आधे घंटे बाद ही उसके घायल होने की खबर घर पहुंची। सभी भागते हुए अस्पताल पहुंचे और अपने जिगर के टुकड़े को मृत पाया। घटनाक्रम कुछ यूँ बना स्कूल आने के बाद बच्चा लघुशंका के लिए टॉयलेट गया वहां किसी एक बस का कंडेक्टर मौजूद था वह आपत्तिजनक स्थति में था। बच्चे को देख उसने बच्चे को पकड़ कर उसके साथ कुकर्म का प्रयास किया। जब बच्चा बचने के लिए चीखने लगा तो उसने धारदार हथियार से उसका गला रेत दिया और खुद वहां से भाग गया। बच्चा लहूलुहान स्थिति में लगभग घिसटता हुआ बाहर आया तब दूसरे बच्चों ने उसे खून से लथपथ देखा , हल्ला मचाया। ये सारी घटना स्कूल के सी सी टीवी कैमरे में कैद हो गयी। अब इस सारे घटनाक्रम को दूसरे पहलु से देखने और समझने का प्रयास करें। पहला तो ये कि छात्रों के शौचालय तक एक बस का कंडेक्टर कैसे पहुंचा ? दूसरा ये कि यदि वह वहां पहुंचा भी ,तो अपने साथ धारदार हथियार लेकर स्कूल प्रांगण में कैसे दाखिल हुआ ? तीसरा ये कि जिस व्यक्ति को काम पर आये सिर्फ चार माह ही हुए थे वह इतना स्वछंद होकर सभी जगहों पर कैसे आजा पा रहा था ? चौथा ये कि क्या ये जरूरी नहीं समझा गया कि छोटे बच्चों के शौचालय में किसी दाई वगैरह की व्यवस्था हो , क्योंकि कई छोटे बच्चे तो ढंग से अपने कपडे भी नहीं खोल पाते हैं। पांचवा और सबसे जरूरी कि अब स्कूल क्या करेगा ? क्या हर बार की ही तरह खुद को बचाने की फ़िराक़ में वह घटना को ढकने छुपाने का प्रयास करेगा या सच का साथ देकर इंसाफ कराने में सहयोग देगा। जिस माता पिता का बच्चा गया है उनकी पीड़ा को महसूस करें सभी , क्या जीवन भर उस बच्चे की कमी के साथ उसके साथ हुए ये घृणित हादसे का भय उन्हें तिल तिल नहीं मारेगा ? उस माँ के दर्द की इंतेहा ये होगी की वह जीवन भर उसे तैयार करके स्कूल भेजते हुए ही याद रखेगी। एक समय था जब हम बच्चियों के प्रति सचेत रहते थे पर आज बालक भी इस घृणित कर्म से अछूते नहीं रहें। समलैंगिकता ने अब ईश्वर के बनाये सारे नियमों की परिभाषा ही बदल कर रख दी। वह मासूम बच्चा बलि चढ़ गया किसी की अतृप्त इच्छाओं की। धन्य है ये वर्तमान समाज और धन्य है ये वर्तमान कानून जिसका फायदा उठाकर ऐसे लोग निडर हो कर ऐसा काम निरंतर कर रहे है
अब दूसरे देशों में इस घृणित कुकृत्य की निर्धारित सजा देखिये। अमेरिका में बलात्कार की सजा है 30 साल तक की कैद। रूस में , 20 साल तक का कठोर कारावास। चीन में no trial , मेडिकल पुष्टि के बाद सीधे मृत्यु दंड। पोलैंड में , अपराधी को सूअरों के बाड़े में जीवित छोड़ दिया जाता है वह वही घायल होकर मर जाता है। इराक में , पत्थरों से मार मार कर चौराहे पर हत्या। ईरान में , 24 घंटे के अंदर या तो पत्थरों से मार कर हत्या नहीं मरा तो फांसी। दक्षिण अफ्रीका में , 20 से 25 साल की दुष्कर जेल। सऊदी अरब में फाँसी या बाल शोषण सिद्ध होने पर यौनांग काट दिए जाने की सजा। मंगोलिया में परिवार द्वारा बदले स्वरुप की मृत्यु। नीदरलैंड में , यौन अपराध के रूप के अनुसार अलग अलग कठोर सजाएँ। क़तर में हाथ पैर और यौनांग काट कर छोड़ दिया जाये या फिर फांसी। मलेशिया में मृत्यु दंड। अफगानिस्तान में 4 दिनों के भीतर बीच चौराहे पर गोली मार कर हत्या और शव को क्रेन के सहारे दो दिन तक लटकाये रखना ताकि लोग दहशत समझ सकें। ये सब दूसरे देशों के नियम है अब हिंदुस्तान का आलम देखिये ...... धरना , प्रदर्शन , जांच आयोग , समझौता, पीड़ित की आलोचना , मीडिया ट्रायल, राजनीतिकरण , जमानत , सालों बाद चार्जशीट , सालों बाद मुकदमा , अपमान , जिल्लत , और अंत में या तो भुक्त भोगी द्वारा आत्महत्या या फिर अपराधी का छूट जाना। बस यही पर ख़त्म हो जाता है एक पीड़ित के परिवार की दुःख गाथा। क्योंकि उन्हें इंसाफ मिलने कि कोई उम्मीद नहीं होती। बस जीवन भर सिर्फ दुःख मनाते रहों यह उनकी सजा होती है।

आज के समाचार पत्र में एक खबर हैडलाइन के रूप में छपी और दुःख जताने के लिए मैंने एक बार फिर अपने लेख का सहारा लिया। दिल्ली के गुडगाँव में एक विद्यालय रेयान इंटरनेशनल में एक दूसरी कक्षा के बच्चे की गला रेत कर हत्या कर दी गयी। कारण वही , कुकर्म का प्रयास। छह वर्ष का मासूम सा बच्चा सुबह 7. 55 पर अपने पिता द्वारा स्कूल छोड़ा गया और करीब आधे घंटे बाद ही उसके घायल होने की खबर घर पहुंची। सभी भागते हुए अस्पताल पहुंचे और अपने जिगर के टुकड़े को मृत पाया। घटनाक्रम कुछ यूँ बना स्कूल आने के बाद बच्चा लघुशंका के लिए टॉयलेट गया वहां किसी एक बस का कंडेक्टर मौजूद था वह आपत्तिजनक स्थति में था। बच्चे को देख उसने बच्चे को पकड़ कर उसके साथ कुकर्म का प्रयास किया। जब बच्चा बचने के लिए चीखने लगा तो उसने धारदार हथियार से उसका गला रेत दिया और खुद वहां से भाग गया। बच्चा लहूलुहान स्थिति में लगभग घिसटता हुआ बाहर आया तब दूसरे बच्चों ने उसे खून से लथपथ देखा , हल्ला मचाया। ये सारी घटना स्कूल के सी सी टीवी कैमरे में कैद हो गयी। अब इस सारे घटनाक्रम को दूसरे पहलु से देखने और समझने का प्रयास करें। पहला तो ये कि छात्रों के शौचालय तक एक बस का कंडेक्टर कैसे पहुंचा ? दूसरा ये कि यदि वह वहां पहुंचा भी ,तो अपने साथ धारदार हथियार लेकर स्कूल प्रांगण में कैसे दाखिल हुआ ? तीसरा ये कि जिस व्यक्ति को काम पर आये सिर्फ चार माह ही हुए थे वह इतना स्वछंद होकर सभी जगहों पर कैसे आजा पा रहा था ? चौथा ये कि क्या ये जरूरी नहीं समझा गया कि छोटे बच्चों के शौचालय में किसी दाई वगैरह की व्यवस्था हो , क्योंकि कई छोटे बच्चे तो ढंग से अपने कपडे भी नहीं खोल पाते हैं। पांचवा और सबसे जरूरी कि अब स्कूल क्या करेगा ? क्या हर बार की ही तरह खुद को बचाने की फ़िराक़ में वह घटना को ढकने छुपाने का प्रयास करेगा या सच का साथ देकर इंसाफ कराने में सहयोग देगा। जिस माता पिता का बच्चा गया है उनकी पीड़ा को महसूस करें सभी , क्या जीवन भर उस बच्चे की कमी के साथ उसके साथ हुए ये घृणित हादसे का भय उन्हें तिल तिल नहीं मारेगा ? उस माँ के दर्द की इंतेहा ये होगी की वह जीवन भर उसे तैयार करके स्कूल भेजते हुए ही याद रखेगी। एक समय था जब हम बच्चियों के प्रति सचेत रहते थे पर आज बालक भी इस घृणित कर्म से अछूते नहीं रहें। समलैंगिकता ने अब ईश्वर के बनाये सारे नियमों की परिभाषा ही बदल कर रख दी। वह मासूम बच्चा बलि चढ़ गया किसी की अतृप्त इच्छाओं की। धन्य है ये वर्तमान समाज और धन्य है ये वर्तमान कानून जिसका फायदा उठाकर ऐसे लोग निडर हो कर ऐसा काम निरंतर कर रहे है
अब दूसरे देशों में इस घृणित कुकृत्य की निर्धारित सजा देखिये। अमेरिका में बलात्कार की सजा है 30 साल तक की कैद। रूस में , 20 साल तक का कठोर कारावास। चीन में no trial , मेडिकल पुष्टि के बाद सीधे मृत्यु दंड। पोलैंड में , अपराधी को सूअरों के बाड़े में जीवित छोड़ दिया जाता है वह वही घायल होकर मर जाता है। इराक में , पत्थरों से मार मार कर चौराहे पर हत्या। ईरान में , 24 घंटे के अंदर या तो पत्थरों से मार कर हत्या नहीं मरा तो फांसी। दक्षिण अफ्रीका में , 20 से 25 साल की दुष्कर जेल। सऊदी अरब में फाँसी या बाल शोषण सिद्ध होने पर यौनांग काट दिए जाने की सजा। मंगोलिया में परिवार द्वारा बदले स्वरुप की मृत्यु। नीदरलैंड में , यौन अपराध के रूप के अनुसार अलग अलग कठोर सजाएँ। क़तर में हाथ पैर और यौनांग काट कर छोड़ दिया जाये या फिर फांसी। मलेशिया में मृत्यु दंड। अफगानिस्तान में 4 दिनों के भीतर बीच चौराहे पर गोली मार कर हत्या और शव को क्रेन के सहारे दो दिन तक लटकाये रखना ताकि लोग दहशत समझ सकें। ये सब दूसरे देशों के नियम है अब हिंदुस्तान का आलम देखिये ...... धरना , प्रदर्शन , जांच आयोग , समझौता, पीड़ित की आलोचना , मीडिया ट्रायल, राजनीतिकरण , जमानत , सालों बाद चार्जशीट , सालों बाद मुकदमा , अपमान , जिल्लत , और अंत में या तो भुक्त भोगी द्वारा आत्महत्या या फिर अपराधी का छूट जाना। बस यही पर ख़त्म हो जाता है एक पीड़ित के परिवार की दुःख गाथा। क्योंकि उन्हें इंसाफ मिलने कि कोई उम्मीद नहीं होती। बस जीवन भर सिर्फ दुःख मनाते रहों यह उनकी सजा होती है।
Comments
Post a Comment