चलन

चलन.........! 
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एक बार मैंने लिखा था ,
रूठी हुई ख़ामोशी से बेहतर है। 
बोलते हुए तर्क वितर्क,
ये दूरियां पिघलाते  हैं। 
आज एहसास हुआ कि ,
खामोशियाँ ही बेहतर है ,
शब्दों के अर्थ का अनर्थ बना , 
दूर हो जातें है यूँ ही लोग। 
यूँ तो जिंदगी गुजर जाती है ,
सभी को खुश रखने में ,
पर जो खुश हुए वो 
अपने ही कब थे ,
जो अपने थे वो ,
कभी खुश हो ही नहीं पाए। 
लोग इतराते रहे हमेशा ,
मुझसे चालाकियां करके। 
उन्हें क्या पता  कि ,
मैं समझ ही गया,
अब जरूरतें जो पूरी 
हो गयी जो उनकी।   

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