वैवाहिक दुष्कर्म................... ! 
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यूँ माने तो दुष्कर्म उसी को मानेंगे जो जबरदस्ती किया जाए। लेकिन इन दिनों चर्चा में एक विषय गरमाया है वह है वैवाहिक दुष्कर्म।  यूँ तो विवाहोपरांत पति पत्नी के संबंद्ध को कोई भी नकार नहीं सकता। और उस पर उंगली भी नहीं उठाई जा सकती।  परन्तु फिर भी इसे वैवाहिक दुष्कर्म का नाम क्यों दिया जा रहा है ये समझने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को जानना जरूरी है। वैवाहिक दुष्कर्म अर्थात पत्नी की इच्छा के बिना किया गया कर्म। इस की कई वजहें हो सकती हैं। स्वास्थ्य , कम उम्र , अरुचि , अनुपयुक्त स्थान या समय ,  अन्य पारिवारिक कारण आदि।  जरूरी नहीं कि साथ में सो रही स्त्री जो पत्नी का दर्जा पा चुकी हो वह प्रत्येक समय अपने साथी की शारीरिक संतुष्टि के लिए मानसिक व शारीरिक रूप से तैयार ही रहें।  उसकी अपनी भी कुछ आवश्यकताएं हो सकती हैं जिन्हे खुर्राट पति नहीं समझते शायद इसी लिए वैवाहिक दुष्कर्म को नए सिरे से परिभाषित  करने की आवश्यता पड़ने लगी।  
                                                         एक उदाहरण के जरिये ये समझाना चाहूँगी।  जैसलमेर में पड़ोस में रह रही एक महिला सदैव चुप चुप सी रहती।  ज्यादातर दुखी और बीमार सी भी लगती थी। किसी से ज्यादा संबंद्ध बनाना भी उन्हें अच्छा नहीं लगता।  व्यवहार थोड़ा अप्रत्याशित लगा।  जांनकारी जुटाई तो जो हक़ीक़त  जान कर रोंगटें खड़े हो गए और उसकी पीड़ा आँखों में नजर और समझ आने लगी।  उनका विवाह बहुत ही छोटी सी उम्र 8 -9  साल में एक 22 साल के युवक से कर दिया गया।  संयुक्त परिवार के बीच जब वह वधु बन कर आयी तब उस छोटी सी उम्र में काम का अत्यधिक बोझ तो पड़ा ही साथ में जो सबसे भयावह घटना घटने लगी उसने उन्हें बिलकुल ही तोड़ दिया। परिवार में भीड़ भाड़ की स्थिति में पति उनके साथ संबंद्ध बनाने में असफल रहता था। तो वह उसे रोजाना लगभग घसीटते हुए रेत के धोरों में ले जाता था और वहाँ उनके साथ संबंद्ध बनाता। वह बच्ची थी ,दर्द से चीखती चिल्लाती पर वहाँ उनकी तकलीफ सुनने वाला कोई नहीं होता। यही उनके पति का मकसद  था कि उस बच्ची की कराह कोई सुनने वाला कोई न हो और उसकी संतुष्टि भी मिल जाए।  ये सिलसिला तकरीबन रोज ही होता रहा। बड़े होते होते वह बच्ची इस की आदी हो गयी और  दिन भर के काम काज से थकी हारी होने के बावजूद खुद ही समर्पण करने को तैयार हो जाती।  यही है वैवाहिक दुष्कर्म....... जबरदस्ती। 
                                                        यही कारण था की उन्होंने अपना बचपन इतनी त्रासदी में खोया। इसी वजह से वह इतनी संवेदनहीन बन चुकी थी कि कोई बड़ा दुःख या सुख उनके व्यव्हार पर कोई प्रभाव नहीं डालता था। स्त्री पुरुष का विवाहोपरांत संबंद्ध एक आवश्यकता है परन्तु इसकी सार्थकता तब सिद्ध होती है जब दोनों की रजामंदी से उसे निभाया जाये। दोतरफा ख़ुशी से ही इसको वाजिब ठहराया जा सकता है। शायद यही कारण है कि इसे आज बहस का मुद्दा बनाया जा रहा है।  जो की स्त्री पक्ष के अनुसार सही है।  परन्तु इसे पुरुष के पक्ष में भी देखा जाना जरूरी है इस को स्त्री एक हथियार के रूप में भी प्रयोग कर सकती है। वह यदि कुत्सित विचारों की हो तो अपने पति पर ये आरोप लगा कर उसे बदनाम भी कर सकती है।  इस लिए इसके सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद ही  मान्यता मिलनी चाहिए।  

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