
**********************************************
मुझे ये समझ नहीं आता कि सरकारें जो भी धन हमसे टैक्स के रूप में लेती है उसे खर्च करने के मामले में चतुराई और गंभीरता से क्यों नहीं सोचती। हम जैसे सामान्य नागरिक अपनी गाढ़ी कमाई में से उन्हें वह टैक्स देश के उन तमाम कार्यों के लिए देतें हैं जिसकी हमें रोजमर्रा की जिंदगी में बहुत ज्यादा जरूरत पड़ती है। जैसे सड़कें, अस्पताल , सीवेज व्यवस्था , बिजली , पानी आदि। क्योंकि अवस्थाओं के लगातार दिखने रहने से व्यक्ति व्यथित हो जाता है और इसी वजह से उसे अपने देश की कुव्यवस्थाओं पर शर्म आने लगती है साथ ही खुद पर भी कि वह इसी देश का नागरिक है। मै यह नहीं कहती की सारी व्यवस्थाओं का जिम्मा सिर्फ सरकारों का है इसमें नागरिकों का भी योगदान है। उसे बनाये रखने में और सावधानी से प्रयोग करने में। लेकिन ये भी तभी होगा जब ये सुविधाएँ हम तक पहुंचेगी। कमी है तो व्यवस्थिति रूप से व्यवस्था चलाने की।

ये नेता एक बार पद पाने के बाद खुद को खुदा से कम नहीं समझते। एक आम आदमी इनके लिए बस एक वोट भर होता है जिसकी आवश्यकता इन्हे या तो चुनाव में पड़ती है या फिर नियमित रूप से टैक्स भरने के लिए। एक बार सत्ता में आने पर कैसे इन नेताओं की संपत्ति का लेखा जोखा करोड़ों अरबों तक पहुँच जाता है ये समझ से परे है। क्योंकि हमारा ही धन इनकी आने वाली दसियों पुश्तों के लिए जोड़ा कर रखा जा रहा हो और हम रोक नहीं पा रहे ये विडम्बना नहीं तो और क्या ? बेहिसाब जमीनें , जेवरात , नोटों से भरे गट्ठर , फैक्ट्रियां और उद्योग , जरूरत से कहीं ज्यादा गाड़ियां हवाई जेट जैसी सुविधाएँ अब इनके लिए चुटकी बजाने जैसे आसान हो गए हैं।

एक आम नागरिक जिस सपने के पीछे जीवन भर भागता रहता है और उसी के लिए जोड़ते हुए उसकी पूरी पीढ़ी ख़त्म हो जाती है। उसे ये नेता सिर्फ एक सत्र में आ कर पूर्ति कर लेते है। आखिर वो कौन लोग हैं जो इन की असलियत नहीं पहचान पा रहें , आखिर वो कौन लोग यहीं जो ये जानते समझते हुए भी कि कल ये उन्ही के धन से करोड़ों में खेलेंगे इनको चुनाव जिताने में सहायक बन रहे। शर्म आती है ऐसी सोच और समर्थन पर जो सही गलत का फर्क नहीं देख पा रही।
Comments
Post a Comment